भारत में गोद लेने की प्रक्रिया

भारत में गोद लेने की प्रक्रिया बहुत ही पुरानी है ,हमारे वेदों में भी इसकी चर्चा की गई है,गोद लेने की प्रक्रिया के लिए हिन्दू दतक अधिनियम और रखरखाव 1956 बनाया गया इसके अनुसार इसके अन्तर्गत सभी हिन्दू , जैन, बौद्ध और सिख के लोग गोद ले सकते है।

             इसके लिए को मुख्य सरकारी केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण या सी . ए. आर. ए जब आप  इस पर registration करते है तब ये सारी प्रक्रिया को शूरु करता है ,इसके लिए इसने कुछ मानक बनाया है कि कौन कौन बच्चा को गोद ले सकते है -

*जो लोग बच्चे को गोद लेने को तैयार हो वे  बालिग हो दिमागी और  शारीरिक रूप से स्वस्थ हो।

भारत मे कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया

 भारत में हिन्दू मैरिज मे विवाह को संस्कार माना गया लोग पहले अपनी जाति में ही शादी करते थे,पर धीरे धीरे इसमें परिवर्तन हो रहा और अब तो लोग अलग धर्म में वी शादी करने लगे है जिसके लिए  भारत में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954लाया गया है ।

   इस विवाह के लिए कौन कौन अप्लाई कर सकते है -

1.दोनो  पक्ष कार बालिग हो पुरुष की आयु 21साल हो और लड़की की आयु 18साल या इससे ज्यादा हो।

2.दोनो मे से किसी का पूर्व विवाह ना हुआ हो। ,या लड़के कि पत्नी जिंदा ना हो और लड़की का पति जिंदा ना हो।या तलाक शुदा हो।

बिल्डर समय पर फ्लैट नहीं दे रहा - क्या कदम उठा सकते है?

अगर आप ने कोई फ्लैट बुक किया है और आपको बिल्डर समय पर फ्लैट नहीं दे रहा हो तो आप क्या लीगल कदम ले सकते है ।अपना घर हो ये हर व्यक्ति की चाहत होती है जिसको पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी कमाई के पैसे को जोड़े कर अपने लिए घर बुक करते है ,पर जब उस घर को बिल्डर समय पर नहीं देते है तो व्यक्ति की मनस्थिति विचलित हो जाती है।

               पर जो बिल्डर अपने ग्राहक के साथ ऐसा करते है उसके लिए  ग्राहक अपनी सुरक्षा के लिए कानून की मदद ले सकते है ._____

मकान मालिक और किरायेदार विवादो से बचने लिए क्या करे?

 आज के युग में लोगो को अपने घर से कभी पढ़ाई के लिए तो कभी अपने व्यापार के लिए या नौकरी के लिए घर को छोड़ कर एक शहर से दूसरे शहर में रहना पड़ता हैं,तो बिना घर के तो नहीं रहा जा सकता है।इसलिए किराए की घर लिया जाता है और तब उत्पन होता है मकान मालिक और किरायेदार का संबंध और इसके लिए जरूरी है इन दोनों के बीच अनुबंध का होना।इस अनुबंध का क्या मुख्य बिन्दु हो इस पर ही हम बात करेंगे।इस अनुबंध का मूल उद्देश्य है दोनो मकान मालिक और किरायेदार के बीच एक अच्छा संबंध बना रहे जिससे की दोनो पक्ष शान्ति पूर्ण जीवन जिएं।

भारतीय दंड प्रकिया संहिता का धारा १६१

जब किसी के खिलाफ शिकायत पुलिस थाने में दर्ज होता है तो पुलिस उस व्यक्ति का बयान दर्ज करती है या किसी अन्य व्यक्ति से जो वो उस वाद से सम्बन्धित  जिसको की हम १६१ का बयान कहते है|मूल रूप से हम ये बोल सकते है जब कोंई पुलिस अधिकारी भारतीय दंड विधान के इस धारा के अधीन किसी वाद का इन्वेस्टीगेशन करता है तो  वो चाहें तो  किसी भी ऐसे व्यक्ति से वो मौखिक पूछताछ कर सकता है,जो उस समय विशेष में उस जगह मौजूद था ,कोंई पुलिस अधिकरी ,जो इस धारा के अधीन अन्वेषण आर रहा है,या ऐसे अधिकारी की अपेक्षा पर काम करने वाला पुलिस अधिकारी ,जिसको राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस काम को करने के लिए नियुक्त करे तब

दंड प्रकिया संहिता धारा ४३८

जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास हों की उसकी गिरफ्तारी किसी ऐसे अपराध के लिए हों सकती हों जो की गैर-जमानती है, तो वो अपना जमानत के लिए हाई –कोर्ट और सेशन कोर्ट में आवेदन कर सकता है ,कोर्ट निम्न बिंदु को धयान रखते हुए अपना निर्णय देती है -----

बेटी का अपनी पिता की सम्पति पर अधिकार सम्बन्धी कानून

हिन्दू उतराधिकार अधिनियम, हिन्दू  कोड बिल के अंतगर्त  पारित कई कानूनों में से एक है,हिन्दू उतराधिकार अधिनियम 1956  में विवाहित बेटी को हिन्दू अविभाजित परिवार का हिस्सा माना गया और उनको पिता की सम्पति में कोंई अधिकार नहीं दिया गया था,पिता अगर अपने वसीयत में बेटी को अधिकार देते थे तभी उनको पिता की वसीयत के अनुसार अधिकार मिलता,भारत के संसद में 9 सितबर 2005 हिन्दू उतराधिकार अधिनियम, बदलाव किया गया और बेटियों को अपने पिता की सम्पति पर बेटो के समान उतराधिकार दिया गया |