देवशयनी एकादशी के व्रत के लाभ और महत्व के विषय में लेख :
हरि शयनी एकादशी को देवशयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास का प्रारंभ होता है।हिन्दू धर्म शास्त्र में देवशयनी एकादशी के व्रत के लाभ और महत्व का वर्णन करते हुए पद्म पुराण में बताया गया है कि इसका पुण्य ऐसा है कि चार मुखों वाले ब्रह्माजी भी इसके पुण्य का वर्णन नहीं कर सकते हैं।

जो व्यक्ति इस व्रत को करता है वह पाप मुक्त व्यक्ति उत्तम लोक में स्थान पाने का अधिकारी बन जाता है। शयनी एकादशी का व्रत करने वाला महापुण्यवान होता है और इन्हें एक साथ कई यज्ञ और उत्तम-उत्तम वस्तुओं के दान का पुण्य प्राप्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति देवशयनी एकादशी का व्रत करता है वह भगवान विष्णु का परम प्रिय होता है।
देवशयनी एकादशी कब है ?
इस वर्ष देवशयनी एकादशी 2025 में रविवार, 6 जुलाई को मनाई जाएगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है

इस लेख में देवशयनी एकादशी व्रत की पूरी विधि और इसके पुण्य का सरल और विस्तार से विवरण दिया गया है ।
हरि शयनी एकादशी व्रत :
तिथि: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी (2025 में — 6 /7 जुलाई)
हरि शयनी एकादशी को देवशयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास का प्रारंभ होता है।
हरि शयनी एकादशी व्रत की विधि:

व्रत की पूर्व रात्रि (दशमी)
रात्रि में सात्विक भोजन करें।
मन में भगवान विष्णु का ध्यान करें।
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
व्रत का संकल्प लें: “मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता हेतु हरि शयनी एकादशी व्रत करूंगा/करुँगी।”
हरि शयनी एकादशी व्रत पूजन विधि :
भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र पर पीले पुष्प, तुलसीदल, चंदन, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम, श्री विष्णु स्तोत्र या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें।
व्रत कथा का श्रवण करें।
अगर संभव हो तो अन्न-जल का त्याग
निर्जला व्रत श्रेष्ठ है, यदि संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं।

चावल और तामसिक भोजन वर्जित है।
रात्रि जागरण
रात्रि को भगवान विष्णु की भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
द्वादशी (अगले दिन)
ब्राह्मण या किसी जरुरतमंद को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें।
फिर स्वयं भोजन करें।
हरि शयनी एकादशी का पुण्य (Punya) :
सभी पाप नाशक: इस व्रत के करने से पूर्व जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।
मोक्षदायिनी: व्रत रखने वाला व्यक्ति विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
मनोकामना पूर्ति: संतान, धन-समृद्धि व आरोग्य की प्राप्ति होती है।

चातुर्मास व्रत आरंभ: इस दिन से चार माह तक भगवान शयन अवस्था में रहते हैं, अतः शुभ मांगलिक कार्य (शादी, गृह प्रवेश आदि) वर्जित रहते हैं।
हरि शयनी एकादशी व्रत कथा (संक्षेप में)
प्राचीन समय में मान्धाता नामक राजा ने इस व्रत को किया था। उनके राज्य में तीन वर्षों तक अकाल पड़ा। ऋषियों की सलाह पर राजा ने हरि शयनी एकादशी व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राज्य में फिर से वर्षा हुई और प्रजा सुखी हुई।

महत्वपूर्ण नियम :
व्रत में चावल, मसूर, मूंग, बैंगन, प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा आदि वर्जित।
तामसिक आचरण से बचें।
तुलसीदल बिना विष्णु पूजन अधूरा माना जाता है।