हिन्दू धर्म में विवाह को एक संस्कार माना गया है ,इसलिए  हिन्दू  धर्म में कहीं भी तलाक की चर्चा नहीं की गई है ,लेकिन समय आगे बढ़ता रहा है और बदलाव भी आता गया इसलिए आगे चलकर पूरे भारत में हिन्दू धर्म के लोगो के ऊपर जो विवाह  कानून लागू हुआ है उसे हम हिन्दू विवाह अधिनियम 1955  कहते है ।

               न्यायिक सेपरेशन का उपयोग हमेशा तलाक के विकल्प के रूप में माना जाता हैं ,इन दोनो में  मूल अंतर ये है कि जब तलाक होता है तो विवाह समाप्त हो जाता है और जब  न्यायिक सेपरेशन होता है केवल दोनो के शारीरिक संबंध पर रोक लग जाती है ,पर विवाह के अन्य दायित्व समाप्त नहीं होता है,तलाक के बाद  दोनो पक्ष विवाह के लिए स्वतंत्र होते है ,पर ज्यूडिशियल सेपरेशन में दोनो में से कोई  भी विवाह नहीं कर सकते है या यूं कहे की न्यायिक पृथक होने पर विवाह करना अवैध है।

                    इन विभिन्नताओं के बाबजूद इन दोनो में कुछ समानता भी है जैसे दोनो को पाने के लिए आपको फैमिली कोर्ट में याचिका दायर करना होता है, ज्यूडिशियल सेपरेशन और तलाक के लिए जो कारण है वो समान है या  यूं कहें कि जिन कारणों के साथ हम तलाक मांग सकते है उसी कारण के साथ ज्यूडिशियल सेपरेशन को मांग सकते है।

               ज्यूडिशियल सेपरेशन कैसे लिए जाए इसके बारे में हिन्दू विवाह अधिनियम 1955की धारा 10 में व्याख्या की गई है,जबकि तलाक कैसे लिया जाए और इसके लिए कौन कौन से कारण है जब हम तलाक का याचिका दायर कर सकते है ये हिन्दू विवाह अधिनियम 1955की धारा 13 में व्याख्या की गई है ,लेकिन जब हम ये देखते हैं कि ज्यूडिशियल सेपरेशन के लिए आवेदन करने के लिए कारण क्या होने चाहिए तो हम हिन्दू अधिनियम की धारा 13(1)का ही सहारा लेते है ।

              भारतीय दंड विधान की धारा 376 (बी)ये कहता है कि यदि कोई पुरुष यदि उसका अपनी पत्नी के साथ ज्यूडिशियल सेपरेशन हुआ हो और यदि वह अपनी पत्नी के इच्छा के बगैर शारीरिक संबंध बनाता है तो उसको 2साल की सजा और आर्थिक दंड भी दिया जाएगा।

     जुडिशियल सेपरेशन से संबंधित मुख्य केश  है___

1.हीराचन्द श्रीनिवास मानगांवकर बनाम सुनंदा AIR2001 SC 1285

2.  बिपिन चन्द्रा बनाम प्रभावती AIR 1957 SC 176.