रूस और यूक्रेन विवाद क्या है 

आज तक जितना भी युद्ध हुआ है उसमें से कोई भी युद्ध ऐसा नहीं है जो बिना कारण हुआ हो.युद्ध होने के साथ ही देश में  बहुत सारी  परेशानियों का सामना करना पड़ता है | सुरक्षा के साथ साथ आर्थिक  स्थिति पर भी बहुत ख़राब असर पड़ता है | जाहिर है कोई भी देश अपनी सुरक्षा और अर्थ नीति को ख़राब नहीं करना चाहेगा जब तक की युद्ध के अलावा और कोई उपाय नहीं रहा गया हो| रूस और यूक्रेन की युद्ध का कारण  यह भी है की आज से हजारों साल पहले से ही रूस और यूक्रेन का इतिहास काफी उलझा हुआ  रहा है।इस युद्ध के बाबजूद यूक्रेन और रूस के रिश्ते को अभी भी  समझना बहुत मुश्किल है. यूक्रेन के कुछ जगह के लोग स्वतंत्र रहना चाहते हैं, लेकिन पूर्वी यूक्रेन के लोगों की अभी भी यही  मांग है कि यूक्रेन को रूस के प्रति वफादार रहना चाहिए. 

 

तथ्यों के मुताबिक हजारों साल पहले  यूक्रेन  एक बहुत ही शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में मशहूर था | सोवियत संघ की ज़्यादातर यूरोपीय देश  खेती के लिए यूक्रेन पर निर्भर थे। जब सोवियत संघ का विलय हुआ था उस समय ही रूस अपनी शक्ति प्रदर्शन के उद्देश्य से अपने आस पास के राष्ट्रों पर अपना विचार थोपने की कोशिश करने लगा था | असल में  रूस को ये भी डर  था की कही अमेरिका प्रभावित नाटो देश रूस की अंतरराष्ट्रिय सीमा के द्वारा  किसी तरह की सैन्य कारवाई न कर दे | इस डर के कारण ही रूस 1991 से अपनी शक्ति और संप्रभुता के लिए पूरी दुनिया से युद्ध करता रहा  है |यूक्रेन के अंदर भी इस बात के लिए एक विद्रोह का माहौल बना हुआ था  कि यूक्रेन के पूर्वी और उत्तरी क्षेत्र में रूसी भाषा का व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है | सामान्यतः उक्रेन में  अक्सर यूक्रेनी सेना और विद्रोहिओं के बीच संघर्ष होता रहता था जिसके परिणामस्वरूप नरसंहार जैसी घटनाएं भी हो जाया करती थीं | यह भी एक वजह है रूस और यूक्रेन  के युद्ध आरम्भ होने का | 

नाटो क्या है और इसकी युद्ध में क्या भूमिका है?

असल में रूस और यूक्रेन  की युद्ध का अहम् कारण यह माना जाता है की यूक्रेन  भी नाटो का सदस्य बनना चाहता है ,किन्तु रूस इस के पक्ष में  नहीं है | अप्रैल 4 ,१९४९ को नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ) का निर्माण  हुआ था | इस संगठन को अमेरिका द्वारा बारह देशों के समर्थन से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बनाया गया था |  नाटो वेस्टर्न कंट्रीज और यूएसए के बीच बना एक सैन्य गठबंधन है जो सोवियत संघ के विस्तार पर रोक लगाने के उद्देश्य से बनाया गया है | रूस  यूक्रेन को नाटो से नहीं जुड़ने देना चाहता है क्यूंकि लातविया, इस्तोनिया जैसे देश भी नाटो में शामिल हो चुके हैं और अगर यूक्रेन भी नाटो से जुड़ गया तो यह रूस के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण होगा | क्यूंकि अमेरिका ही नहीं और भी कई पश्चिमी देश उस पर दवाब बना पाएंगे | इस संगठन में किये गए  समझौते के अनुसार  इसके प्रत्येक  सदस्य यानि तीस देश यूक्रेन को सैन्य बल देंगे और एक साथ मिल कर रूस पर हमला भी कर पाएंगे।यह तात्पर्य है की नाटो से बेहतर संगठन और कोई भी  नहीं हो सकता है जो यूक्रेन की रक्षा कर सके.

 

रूस और यूक्रेन युद्ध पर  भारत की प्रतिक्रिया 

 

यह भारत के लिए बहुत ही दुबिधाजनक परिस्थिति उत्पन्न हो गया है ,जहा भारत रूस को भी नाराज नहीं करना चाहता किन्तु  पश्चिमी देशों से भी भारत की साझेदारी अच्छी है। इतना ही नहीं भारत और यूक्रेन के बीच व्यापारिक, रणनीतिक और राजनयिक संबंध भी काफी  मजबूत  हैं. इसका यही अर्थ हुआ की  भारत इनमें से किसी भी देश को परेशान करने का जोखिम नहीं उठा सकता.इस सब के साथ ही भारत के लिए यह भी  एक चिंता की ही  बात  है कि यूक्रेन में करीब 20,000 भारतीय फंसे हुए हैं जिनमें से 18 हजार मेडिकल के छात्र हैं.जिनको सुरक्षित लाना बहुत जरुरी है। 

 

क्या यह युद्ध तृतीय विश्व युद्ध का कारण बनेगा

वैसे तो यह युद्ध अभी रुकने का नाम नहीं ले रहा है,यूक्रेन की सीमाओं पर 1,25,000 रूसी सेना के जवान खड़े हैं. स्थिति इतनी गंभीर है कि नाटो देशों और रूसी सेना के बीच कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है. वैसे तो  यूक्रेन के पास न तो रूस के तुलना में  बड़ी सेना है और न ही आधुनिक हथियार. यूक्रेन में 1.1 मिलियन सैनिक ही उपलब्ध हैं जबकि रूस के पास 2.9 मिलियन सैनिक  हैं. जहां यूक्रेन के पास 98 ही  लड़ाकू विमान हैं, रूस के पास करीब 1500 लड़ाकू विमान हैं. रूस के पास यूक्रेन की तुलना में अधिक हमलावर हेलीकॉप्टर, टैंक और बख्तरबंद वाहन भी हैं.आम लोगों के मन में यह डर पैदा हो चूका है की कही यह युद्ध तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत न करा दे ,किन्तु रूस यह कभी नहीं चाहेगा की वह एक साथ अपने सारे शत्रु राष्ट्रों से लड़ने लगे |   युद्ध  में परमाणु बमों का इस्तेमाल करने से पहले रूस यह भी सोचेगा की अगर वह किसी देश के ऊपर परमाणु हमला करता हैं, तब नाटो तथा दुनिया के अन्य देश चुप नहीं बैठेंगे।अतः यह युद्ध तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत का कारण नहीं हो सकता |