बीएनएस के तहत अब कुछ और बदलाव किये गए हैं| इन विधेयकों की कुछ खास बातों का जिक्र किया जिसका नीचे उल्लेख्य किया गया है।

 

लोकसभा में गृहमंत्री माननीय अमित शाह ने बीते अगस्त में मानसून सत्र के आखिरी दिन में नए आपराधिक कानूनों से जुड़े तीन बिल पेश किए थे | उन्होंने बताया कि ये विधेयक भारत में मौजूदा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) की जगह लेंगे | लोकसभा ने बुधवार को तीन आपराधिक कानून विधेयक, भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय सुरक्षा (द्वितीय) विधेयक 2023 पारित कर दिए गए हैं , जो भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को निरस्त करने और प्रतिस्थापित करने का प्रावधान किया गया है ।

 

 

इन विधेयकों की कुछ खास बातों का जिक्र किया जिसका नीचे उल्लेख्य किया गया है।

 

 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में अपने जवाबी भाषण में इन विधेयकों की कुछ खास बातों का जिक्र किया जिसका नीचे उल्लेख्य किया गया है।

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के अंतर्गत 'आतंकवादी अधिनियम' को एक अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है।इसमें ऐसे कृत्य ,जिस कृत्य के द्वारा  भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा पर हमला किया जाता  हैं या किसी समूह के बीच आतंक फैलाते हैं  इसमें ऐसे कृत्य को शामिल किया गया है ।

 

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के अंतर्गत 'आतंकवादी अधिनियम' को एक अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है।

 

 

 

बीएनएस के तहत अब कुछ और बदलाव किये गए हैं जैसे 'मॉब लिंचिंग' को एक अलग अपराध बना दिया गया है, जिसकी सजा का अधिकतम प्रावधान मौत की सजा होना है। 

कई छोटे-मोटे अपराधों के लिए कारावास की जगह 'सामुदायिक सेवा' को सजा का विकल्प बनाया गया है। 

जांच में फोरेंसिक साक्ष्य के अनिवार्य संग्रह को सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान किए गए हैं, जिससे अभियोजन को मज़बूती मिलेगी। 

यौन हिंसा मामले में इसके पीड़िता के बयान की ऑडियो एवं वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य की गई।

 

 

'मॉब लिंचिंग' को एक अलग अपराध बना दिया गया है,

 

 

 

हर  जिले में पुलिस या अभियोजन की सिफारिशों से अलग अभियोजन का एक स्वतंत्र निदेशक होगा जो यह तय करेगा कि अपील दायर की जानी चाहिए या नहीं।15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध आईपीसी के अनुसार अपराध नहीं था; किन्तु अब यह आयु सीमा  बढ़कर 18 वर्ष की हो गई है | 

पहले हिट एंड रन' के लिए 10 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान था किन्तु अब  अगर दुर्घटना के बाद अपराधी पीड़ित को अस्पताल या पुलिस के पास ले जाता है तो सजा में कटौती की  जाएगी | 'गंभीर चोट' के अपराध के लिए, ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक अलग प्रावधान बनाया गया है जहां पीड़ित मस्तिष्क रूप से मृत हो जाता है और दस साल तक की अधिक कठोर सजा निर्धारित की जाती है। एफआईआर, आरोप पत्र, ट्रायल से संबंधित प्रावधान | 

 

 

15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध आईपीसी के अनुसार अपराध नहीं था; किन्तु अब यह आयु सीमा  बढ़कर 18 वर्ष की हो गई है | 

 

 

 

वहीं अगर  डॉक्टरों के  लापरवाही से अगर किसी की मौत हो जाने पर  छूट देने का प्रावधान लाया जाएगा। यह इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुरोध के बाद किया जा रहा है। स्नैचिंग' भी  एक अलग तरह का अपराध माना गया है। 

जीरो एफआईआर पंजीकरण के लिए नए  प्रावधान किए गए। अब यह सुबिधा प्रदान कि गई है कि पीड़ित किसी भी पुलिस स्टेशन से संपर्क कर सकता है, यह जरूरी नहीं कि क्षेत्राधिकार वाले पुलिस स्टेशन से ही संपर्क किया जाए। एफआईआर 24 घंटे के भीतर क्षेत्राधिकार वाले पुलिस स्टेशन को स्थानांतरित कर दी जाएगी। अदालतें पीड़ितों को सुने बिना राज्य को मामले वापस लेने की अनुमति नहीं दे सकतीं।

 

 

स्नैचिंग' भी  एक अलग तरह का अपराध माना गया है।

 

 

 

सीआरपीसी ने एफआईआर के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की है। लेकिन बीएनएसएस अनिवार्य समय-सीमा निर्धारित करता है। कम अपराध वाले मामलों में शिकायत करने के 3 दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी। 3 से 7 साल की सजा वाले अपराधों के लिए 14 दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच पूरी करनी होगी और उसी आधार पर एफआईआर दर्ज करनी होगी।

राजद्रोह' का अपराध हटा दिया गया। बीएनएस भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दंडित करता है (खंड 150)। जबकि राजद्रोह ने सरकार के खिलाफ कृत्यों को अपराध घोषित कर दिया है, बीएनएस ने सरकार को देश से बदल दिया है। 'राजद्रोह' को ही  'देशद्रोह' साबित कर  दिया गया है|  नागरिकों को सरकार के खिलाफ बोलने का अधिकार है और इसकी रक्षा की जानी चाहिए लेकिन देश के खिलाफ कृत्य किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

 

'राजद्रोह' को ही  'देशद्रोह' साबित कर  दिया गया है|

 

 

 

अब यह नियम बनाये गए हैं कि पीड़ित को पुलिस रिपोर्ट की प्रतियां देना अनिवार्य है । पीड़ित को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित किया जाएगा। सभी पूछताछ और परीक्षण इलेक्ट्रॉनिक मोड में आयोजित किए जा सकते हैं। मानव शरीर के विरुद्ध अपराध, महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध को बीएनएस की शुरुआत में लाया गया। हत्या को अब आईपीसी की धारा 302 के बजाय बीएनएस के धारा 102 में रखा गया है। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए अलग प्रावधान है। 18 साल से कम उम्र की लड़की से रेप के मामले में आजीवन कारावास और मौत की सजा दी जा सकती है । सामूहिक बलात्कार में 20 वर्ष या शेष जीवन कारावास।यौन हिंसा मामलों के पीड़ितों की मेडिकल रिपोर्ट भेजने के लिए समय सीमा शुरू की गई है।

केवल दोषी ही मौत की सजा के खिलाफ दया याचिका दायर कर सकता है। उसके स्थान पर एनजीओ या तीसरे पक्ष दया याचिका दाखिल नहीं कर सकते | अपील पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के 30 दिन के भीतर दया याचिका दाखिल करनी होती है | 

 

 

यह समय बहुत सोच समझकर निर्णय लेने का होता है।

 

 

 

 

ई-एफआईआर: एफआईआर के इलेक्ट्रॉनिक पंजीकरण के लिए प्रावधान आरम्भ  किए जायेंगे । इस प्रावधान का लाभ मुख्य रूप से उन महिलाओं को प्राप्त  होगा, जो यौन हिंसा की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस स्टेशन जाने से कतराती  हैं। वहीं तलाशी की प्रक्रिया के दौरान वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य कर दी गई है । 

अब नई गवाह सुरक्षा योजना लाई गई, जिसे हर राज्य को सूचित करना होगा। अपराधों में जब्त की गई सामग्री वस्तुओं और वाहनों को वीडियो-फोटोग्राफी साक्ष्य लेने के बाद अदालत की अनुमति से 30 दिनों के भीतर बेचने का प्रावधान पेश किया गया है |  इससे देश भर के उन पुलिस स्टेशनों का बोझ कम हो जाएगा जहां अपराध संपत्तियों को दशकों तक बिना निपटारे के छोड़ दिया जाता था। 

 

 

 संक्षिप्त ट्रायल केवल 2 वर्ष तक की सजा वाले अपराधों के लिए ही संभव था।

 

 

 

संक्षिप्त ट्रायल - पहले, संक्षिप्त ट्रायल केवल 2 वर्ष तक की सजा वाले अपराधों के लिए ही संभव था। अब इसे बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है।यदि 120 दिनों के भीतर सिविल सेवकों के खिलाफ ट्रायल चलाने की मंज़ूरी पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है, तो यह माना जाएगा कि मंज़ूरी दे दी गई है।  जो भगोड़े अपराधी हैं उन  की संपत्ति जब्त करने का प्रावधान किया गया है । इससे पहले केवल 19 अपराधों में ही आरोपियों को भगोड़ा घोषित किया जा सकता था। अब इसे बढ़ाकर 120 अपराध कर दिया गया है। 

 

 

इससे पहले केवल 19 अपराधों में ही आरोपियों को भगोड़ा घोषित किया जा सकता था। अब इसे बढ़ाकर 120 अपराध कर दिया गया है। 

 

 

 

माननीय गृह मंत्री ने गिरफ्तारी के पहले 15 दिनों के बाद पुलिस हिरासत की अनुमति देने वाले प्रावधान के बारे में उठाई गई चिंताओं का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान लचीलेपन की अनुमति देने के लिए पेश किया गया है, ताकि पुलिस 40 या 60 दिनों की अलग-अलग अवधि में हिरासत की मांग कर सके। यह प्रावधान उन स्थितियों को भी संबोधित करेगा जहां हाई-प्रोफाइल आरोपी पुलिस हिरासत से बचने के लिए पहले 15 दिनों के दौरान खुद को अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए बीमारी का बहाना बना लेते  हैं।