एक प्रजातांत्रिक देश है और यहां पर विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं ।किसी देश में कोई कानून लागू होता है वह उस देश में चली आ रही प्रथाओं और समाज को ध्यान में रखकर बनाया जाता है, हमजानते हैं कि भारत में विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं और उनकी मान्यताएं भी अलग-अलग हैं इसलिए विभिन्न धर्मों के लिए विभिन्न तरह के विवाह और तलाक के नियम भारत में मौजूद हैं । यहां पर हम केवल मुस्लिम महिला अगर अपने पति से तलाक लेनी के लिए क्या कर सकती है इस पर चर्चा करते है।हम ये जानते है की मुस्लिम विवाह एक कॉन्ट्रैक्ट है इसलिए इसे खत्म भी किया जा सकता है,जिसे तलाक कहते है । मुस्लिम तलाक के बारे में पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा कि अल्लाह द्वारा मनुष्य को दी गई सभी वस्तुओं में सबसे ग्रंथ वस्तु तलाक है। मुस्लिम विधि में तलाक देने का अधिकार पुरुष के पास है परंतु मुस्लिम स्त्री भी पुरुष से तलाक मांगने का अधिकार रखती है वह अगर चाहे तो तलाक की मांग न्यायालय में जाकर कर सकती हैं।
मुस्लिम विवाह मैं पुरुष किसी मुस्लिम स्त्री को अकारण भी तलाक देने का अधिकार रखता है मुस्लिम निकाह में तलाक यदि पुरुष का अधिकार है तो मैहर स्त्री का अधिकार है परंतु इन सब के बावजूद शरीयत के विधान के अधीन भारतीय संसद का बनाया हुआ कानून एक भारतीय मुस्लिम स्त्री को अपने तलाक मांगने का अधिकार देती है।
मुस्लिम महिला के तलाक के लिए निम्न विधान का उपयोग कर सकती है__
(1) तलाक के ताफबीज___ताफबीज का मतलब होता है प्रत्ययोजन जिसका मतलब होता है की कोई भी मुस्लिम पुरुष किसी शर्त की अधीन अपने तलाक दिए जाने के अधिकार को मुस्लिम स्त्री को सौप सकता है । मुख्य वाद है बफातन बनाम शेख मेमुना वीवी. ए आई आर (1995) कोलकाता 304 के मामले में दोनो के बीच ये करार किया गया था कि पति अपने पत्नी का भरण पोषण नहीं कर पाता है तो पत्नी अपने पति से तलाक ले लेगी इस प्रकार का करार सामाजिक नीति के विरुद्ध नहीं होता है।
मेहराम अली बनाम आयशा खातून के बाद में पति ने अपनी पत्नी को यह अधिकार दिया था कि यदि वह अपनी पत्नी के सहमति के बिना दूसरा विवाह करेगा तो पत्नी
ताफबीज का प्रयोग करके उससे तलाक देगी।
(2,)खुला_इस्लाम धर्म के प्रारंभ में पत्नी को किसी भी आधार पर तलाक मांगने का अधिकार नहीं था। कुरान द्वारा पहली बार पत्नी को तलाक मांगने का अधिकार दिया गया। फतवा ए आलमगीर जो की भारत में मुस्लिम धर्म की एक मान्यता प्राप्त पुस्तक है जिसमें यह वर्णित है कि जब विवाह के पक्ष का राज्य हैं और इस प्रकार की आशंका हो उनका आपस में साथ रहना संभव नहीं है तो पत्नी प्रतिफल स्वरूप कुछ संपत्ति पति को वापस करके स्वयं को उसके बंधन से मुक्त कर सकती है। खुला मुस्लिम विवाह में पारस्परिक तलाक को कहा जाता है जिसमें पति पत्नी दोनों की इच्छा होती है।
खुला के द्वारा तलाक पत्नी की संपत्ति और प्रेरणा से दिया गया एक ऐसा तलाक है जिसमें विवाहबंधन से अपने छुटकारे के लिए व पति को कुछ प्रतिफल देती है या देने की संविदा करती है ऐसे तलाक को खुला कहते हैं। यह एक प्रकार का पारस्परिक सम्मति के द्वारा विवाह विच्छेद होता है जिसमें पति पत्नी दोनों की इच्छा से विवाह विच्छेद कर दिया जाता है।
मैं पत्नी द्वारा ताला का प्रस्ताव रखा जाता है असल में खुला पत्नी द्वारा पति से खरीदा गया तलाक का अधिकार है इस्लाम में तलाक देने का अधिकार केवल पति के पास है पत्नी तलाक मांग सकती है।
(3) मुबारत____(पारस्परिक तलाक) मुबारक का मतलब है एक दूसरे के सहमति से तलाक लेना,मुबारत में पति और पत्नी अपनी सहमति से तलाक लेते है इसमें दोनों में से किसी की भी तरफ से तलाक का प्रस्ताव आ सकता है जिसकी स्वीकृती दूसरा कर देता है। पत्नी के लिए इद्धत काल का पालन करना अनिवार्य होता है। इसमें दोनों की स्वीकृति अनिवार्य होती है।
खुला और मुबारक में अंतर बस कितना है मुबारत में तलाक का प्रस्ताव दोनो में से कोई भी रख सकता है और दूसरा इसको स्वीकार कर ले।पर खुला का प्रस्ताव केवल महिला द्वारा रखा जाता है। मुबारत में किसी भी पक्षकार को कोई धनराशि नही दी जाती है।खुला के प्रस्ताव में पति के तैयार नहीं होने के स्थिति में रखा जाता है, परंतु मुबारक में दोनों सहमत होते हैं। भारतीय मुसलमानों में वर्तमान समय में तलाक के मुबारक ज्यादा प्रचलन में हैं।
4.लिएन______जब कोई पति अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाए किंतु वह आरोप झूठा हो तो वहां पत्नी को अधिकार हो जाता है कि वह दावा करके विवाह विच्छेद कर ले।
कोई भी वयस्क और स्वस्थ चित पति अगर अपनी पत्नी पर कोई व्यभिचार का आरोप लगाता है ,और ये कहता है उसकी पत्नी का किसी अन्य पुरुष के साथ शारीरिक संबंध है,या बनाया है और यदि यह आरोप झूठा साबित होता है तो महिला अपने पति से तलाक इस आधार पर मांग सकती है।
मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 ______
शुरुआत में भारतीय मुस्लिम महिला केवल दो आधार पर ही न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल कर सकती थी
(A) पति की निपुंसकता
(B) पर पुरुष गमन का झूठा आरोप (लिएन)
मुस्लिम महिलाओं से संबंधित बहुत सारी विसंगतियां मुस्लिम धर्म में जन्म लेने लगी और मुस्लिम महिलाओं की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होने लगी फिर ऐसी परिस्थितियों का जन्म हुआ जिनके होने पर मुस्लिम महिलाएं तलाक मांग सकती थी परंतु मजबूरी में तलाक नहीं मांग पा रही थी।
हनफ़ी विधि ने मुस्लिम स्त्री को विवाह समाप्त करने का अधिकार नहीं दिया था पर हनफी विधि में या व्यवस्था की गई थी कि यदि हनफी विधि के पालन में कठिनाई हो रही हो तो मालिक की शाफ़ई या हनबली विधि वधि का
प्रयोग किया जा सकता है।इसको आधार मान कर इस्लामिक शरीयत के दायरे को भी ध्यान में रखकर मुस्लिम तलाक अधिनियम 1939को पारित किया गया यह भारत के सभी मुस्लिम पर समान रूप से लागू होगा । इस अधिनियम की धारा 2 के अंतर्गत या कहा गया कि कोई भी मुस्लिम महिला ने आधार पर न्यायालय में जाकर अपने विवाह को समाप्त करने के लिए अदालत में वाद प्रस्तुत कर सकती है ।
1. पति की अनुपस्थिति_यदि पति 4 साल तक अनुपस्थित रहता है तो ऐसी स्थिति में मुस्लिम महिला अपने विवाह विघटन के लिए कोर्ट में आवेदन देकर डिग्री पा सकती है यह डिग्री इसके पारित होने के 6 महीने के भीतर तक प्रभावी होती है यदि 6 महीने के अंदर पति वापस लौट आता है तो डिग्री को वापस रद्द करना होता है।
2. पत्नी का भरण पोषण करने में पति का और असफल होना_यदि पति 2 साल तक अपनी पत्नी के भरण-पोषण के संबंध में उपेक्षा कर रहा है यह सफल है तो मुस्लिम विधि के अंतर्गत विवाहिता महिला तलाक की हकदार हो जाती है।
पति वाद का केवल इस आधार पर प्रतिवाद नहीं कर सकता है कि वह अपने निर्धनता और और अस्वस्थता बेरोजगारी कारावास या किसी अन्य आधार पर उसका भरण पोषण नहीं कर पा रहा है।
मुस्लिम विधि में पति को अपनी पत्नी का भरण पोषण करना उसका परम कर्तव्य है और यदि वह इस कर्तव्य का पालन नहीं कर पा रहा है तो पत्नी को यादगार है कि वह उससे तलाक मांग ले।
3. पति का कारावास__यदि पति को 7 साल तक कारावास दे दिया जाता है और यदि इस दंड आदेश के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की गई है तो ऐसी परिस्थिति में पत्नी न्यायालय से तालाक के डिग्री मांग सकती है और वादा प्रस्तुत कर सकती है।
4. दांपत्य दायित्व के पालन में असफलता,___ यदि बिना उचित कारण के पति 3 साल तक दांपत्य दायित्व का पालन नहीं करता है तो पत्नी विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने की हकदार होती है मुस्लिम तलाक अधिनियम 1939 में पति के दायित्व की कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गई है । न्यायालय इस धारा के प्रयोजन के लिए। पति के केवल ऐसे दांपत्य दायित्व का ध्यान करेगा जिसका इस अधिनियम की धारा (2)के किसी उपखंड में शामिल नहीं किया गया है।
(5) पति की निपुंसक होने की दशा मे____यदि पति विवाह के समय निपुंसक था और अभी भी है तो पत्नी विवाह विच्छेद की न्यायिक डिग्री प्राप्त करने की हकदार है डिग्री प्राप्त करने से पूर्व न्यायालय पति के आवेदन पर उससे अपेक्षा करते हुए यह आदेश पारित करते हैं कि ऐसे आदेश पानी के 1 साल के अंदर व न्यायालय को इस बारे में आश्वस्त कर दे कि वह रिपोर्ट नहीं रह गया है यदि पति ऐसा कर देता है तो यह डिग्री प्रभावित नहीं रह जाती है।
(6)पति का पागलपन_ यदि पति पागल हो गया है या फिर कुष्ठ रोग से पीड़ित है या किसी ऐसे रोग से पीड़ित हो गया जिसका संक्रमण एक दूसरे में फैलता है।
(7)पत्नी द्वारा विवाह को अस्वीकृत करना_____यदि पत्नी अपने विवाह के समय में अवयस्क थी और यह विवाह माता-पिता द्वारा की जाती है तो पत्नी अपने 18 साल पूरा होने के पहले अपने विवाह को अस्वीकार करवा सकती है तथा न्यायालय में इस आधार पर डिग्री मांग सकती है कि उसका विवाह बिना उसकी सहमति के हुआ था और ऐसे समय में वह बालिग नही थी। (ख्यार उल बुलुग)।
(8) पति की निर्दयता____अधिनियम की धारा 2(8 )के अनुसार पति द्वारा निर्दयता या क्रूरता करने पर भी पत्नी द्वारा न्यायालय से तलाक की डिग्री मांगी जा सकती है पति पत्नी के साथ मारपीट करता है अनैतिक संबंध औरतों के साथ रखता है दहेज की मांग करता है पत्नी के माता-पिता को गाली देता है तो ऐसी परिस्थिति मेंपत्नी अपने पति से तलाक मांग सकती है,और इसकी वाद वह कोर्ट में प्रस्तुत कर सकती है।
इन सब उपरोक्त परिस्थितियों में मुस्लिम महिला अपने पति से तलाक मांग सकती हैं।और अदालत में इसको आधार मान कर तलाक मांग करते हुए वाद दाखिल कर सकती है।