हमारे देश पति को अपनी पत्नी का भरण पोषण का उत्तरदायित्व दिया गया है ,इसलिए देश की विधि ने भी कानून बना कर पत्नी को अपने पति से भरण पोषण पाने का अधिकार दिया है, मुख्य रूप से पत्नी अपने पति से भरण-पोषण का आवेदन सीआरपीसी 125 के अंतर्गत करती है ।

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के अंतर्गत करती है। पत्नी का भरण पोषण जब कोर्ट द्वारा तय होता है तो  कई चीजों पर निर्भर होता है जैसे पति की आय कितनी है, और पत्नी का खर्चा आदि।अब अब प्रश्न यह है कि क्या पत्नी जितना खर्च अपने पति से मांगती है कोर्ट उतना देने का आदेश पति को दे देती है या नहीं यदि कोई पति अपने पत्नी भरण-पोषण को कम करना चाहता तो वो कोर्ट में इसके लिए आवेदन कर सकता है जो निम्न परिस्थिति पर निर्भर करेगा ______

1. यदि पत्नी अपनी मर्जी से पति से अलग रह रही है और उसका पति उसको अपने साथ रखना चाह रहा है जबकि उसके घर में स्थिति सामान्य है उसके साथ किसी प्रकार का गलत व्यवहार नहीं किया गया है। इसका साक्ष्य पति को कोर्ट में देना होगा।

2. यदि पत्नी स्वयं अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, जैसे उसने कोई अपना व्यापार कर रही हो सरकारी नौकरी हो और यदि वह प्रोफेशनल हो डॉक्टर इंजीनियर आदि।

3. यदि पत्नी का अपने पति के सिवा किसी व्यक्ति से जारता का संबंध है तो पति अपने पत्नी के भरण पोषण के लिए मना कर सकता है ,पर इसके लिए उसको साक्ष्य प्रस्तुत करने होगे।

4.यदि पत्नी ने दूसरी शादी कर ली है , इसकी जानकारी सब से छुपा कर भरण-पोषण की मांग कर रही है तो पति कोर्ट में आवेदन साक्ष्य के साथ कर सकते हैं।

5. यदि पति-पत्नी में तलाक हो जाता है और दोनों समझौते के कागजात पर हस्ताक्षर करते हैं उसमें यदि पत्नी अपने भरण-पोषण के अधिकार का परित्याग कर देती है, एकमुश्त राशि राशि अपने भरण पोषण के लिए लेती है तो ऐसी पत्नी भरण पोषण पाने का अधिकार अपने पति से नहीं रखती है।

          निष्कर्ष का हम क्या कह सकते हैं कि इन आधारों पर पति अपनी का भरण पोषण करने से बच सकते है या उत्तरदायित्व से मुक्त हो सकते है पर ये इस बात पर निर्भर करता है की आप जिस आधार पर भरण पोषण से मना कर रहे उसका साक्ष्य आपको कोर्ट में देना होगा।अगर आपके पास इसका साक्ष्य है तो आप निश्चय   ही कोर्ट द्वारा भरण पोषण की राशि को कम या खत्म करवा सकते है।