सीनियर सिटीजन के अधिकार को और अधिक कारगर बनाने के लिए जिसमें माता _पिता और बुजुर्ग नागरिक के कल्याण तथा भरण पोषण तथा सुरक्षा प्रदान की जा सके senior citizen act 2007 लाया गया। जिसे भारत मे 29/12/2007को लागु किया गया है।

           इस एक्ट में यह कहा गया है की ऐसा व्यक्ति जिसकी उम्र 60साल या उससे अधिक हो और वह व्यक्ति अपना भरण पोषण करने मे समर्थ नहीं हो या अपने स्वामित्व वाली संपत्ति से अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो ,इस अधिनियम के तहत रख रखाव  या भरण पोषण का खर्चा अपनी संतान से पाने का हकदार होगा।(sec.5)

      इस एक्ट के अधीन ये कहा गया है की वैसे माता पिता जो की अपना भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है, या उनके द्वारा अर्जित संपत्ति के द्वारा उनका भरण पोषण नहीं हो पा रहा है तो ऐसे माता  पिता अपने भरण पोषण अपने संतान से पाने के हकदार है ।(sec.5)

           इसके अंतर्गत कहा गया है  माता_पिता (जन्म देने वाले,गोद लेने वाले ) सौतले मां,सौतेले पिता भरण पोषण पाने का अधिकारीहै।

              यहां भरण पोषण का मतलब है भोजन,वस्त्र,आवास ,और मेडिकल परिचर्चा, ईलाज का खर्चा आदि है। इसमें हमेशा सीनियर सिटीजन के हित को ध्यान में रखा जाता है जिसमे उनको भोजन, कपड़ा, स्वास्थ संबंधी सुरक्षा और कई प्रकार के सुरक्षा प्रदान की। जाती है।

          इसका आवेदन माता _पिता या दादा _दादी कर सकते है अपने एक या उससे अधिक बच्चो से कर सकते है जो की बालिग हो।ऐसे सीनियर सिटीजन जिनका अपना कोई बच्चा नहीं होता है वो अपने किसी भी संबंधी से जो कोई  लीगल उत्तराधिकारी हो जो बालिग हो और ऐसे  संबंधी जो की उनकी उत्तराधिकारी संपति को लेगे सीनियर सिटीजन की देखभाल के लिए जिम्मेदार होगे तथा सीनियर सिटीजन उनके खिलाफ सीनियर सिटीजन सेल में आवेदन कर सकते है। जिस में वो केवल अपना भरण पोषण ही नही मांग सकती बल्कि वो खर्चा भी मांग सकती है जो की उनको आवेदन करने में होती है।

                 इस एक्ट के अधीन ये कहा गया है की बच्चो की यह जिम्मेदारी होती है की अपने माता पिता या दोनो या किसी की भी दैनिक जरूरत को पूरा करे जिससे की वो नॉर्मल जिदंगी जी सके।

                 इस एक्ट में बच्चे में शामिल किया गया है _बेटा, बेटी ,पोता पोती,पर ऐसे बच्चों को शामिल नहीं किया गया है जो की बालिग नही हो।

        सीनियर सिटीजन और माता पिता भरण पोषण का आवेदन ट्रिब्यूनल में देते है ।सीनियर सिटीजन एक्ट (sec,_7) में ये कहा गया है की सभी राज्य अपने सब डिविजन में एक या उससे अधिक सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल का गठन करेंगे जो की सीनियर सिटीजन का भरण पोषण के विवाद का निबटारा कर सके।

             ट्रिब्यूनल के पास शपथ पर साक्ष्य लेने के उद्देश्य से दीवानी अदालत की सारी शक्ति होगी। ट्रिब्यूनल में किसी एक या अधिक व्यक्तियों की सहायता ले सकती है, जिन्हें किसी भी मामले की विशेष जानकारी हो। साथ ही साथ ट्रिब्यूनल किसी भी व्यक्ति को गवाह के तौर पर बुला सकती है, किसी को भी आवश्यक डॉक्यूमेंट को लाने को बोल सकती है, या किसी अन्य मैट्रियल ऑब्जेक्ट को भी दिखाने के लिए बोल सकती है।

    इसका आवेदन सीनियर सिटीजन कर सकते हैं__

   1. जहां आवेदक पूर्व में रह रहे हो या अभी रह रहे हो।

 

    2. जहां उनके बच्चे या उनके रिश्तेदार रह रहे होते है।

   पर आवेदन या तो सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल में होगा या कोर्ट में cr.p.c125 के तहत किया जा सकता है। दोनो स्थानों पर एक साथ आवेदन नहीं किया जा सकता है। भरण पोषण करने के लिए आवेदन एक या उनसे अधिक लोगो पर किया जा सकता है या उन रिश्तेदार पर किया जा सकता है ।

           सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल में माता पिता आवेदन कर सकते है या सीनियर सिटीजन कर सकते है,या किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा जिसको  की सीनियर सिटीजन ऑर्थराइज करते है आवेदन कर सकते है।

         सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल अपने आप भी कार्यवाही कर सकते है और भरण पोषण का आदेश कर सकती है, ऐसा वह आवेदन  दायर नहीं होने पर भी कर सकती है।

            जब सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल में याचिका दी जाती है तो ट्रिब्यूनल नोटिस जारी करती है, उन बच्चों या सीनियर सिटीजन के उन संबंधी के खिलाफ जिनके विरूद्ध याचिका दी गई है। ट्रिब्यूनल के पास वही अधिकार होता है जो फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट को cr.p.c के द्वारा दिया गया है।

       ट्रिब्यूनल सीनियर सिटीजन के बच्चों या उनके रिश्तेदार के खिलाफ एक्स पार्टी ऑर्डर भी कर सकती है, यदि उसको ऐसा लगता है की प्रतिवादी जान बूझ कर ट्रिब्यूनल में पेश नहीं हो रहे है।

       याचिका में सुनवाई से पहले ट्रिब्यूनल एक conciliation ऑफिसर को नियुक्त किया जाता है,और conciliation ऑफिसर को अपनी रिपोर्ट एक महीने के अंदर देना होता है।

           यदि सुलह समझौते से हो जाता है ,तो समझौता के शर्त जो के  वादी के बीच होता है,  उसी शर्त को   कंसिल्शन ऑफिसर आदेश पारित कर देते है। 

           ट्रिब्यूनल का मुख्य अधिकारी सब डिविजनल ऑफिसर होता है।ट्रिब्यूनल  किसी को भी conciliation ऑफिसर नियुक्त कर सकती है, tribunal द्वारा किसी भी व्यक्ति को नियुक्ति किया जा सकता है ,conciliation ऑफिसर के रूप जो राज्य के अधिकारी हो या किसी ऐसे सदस्य को जो 1860 रजिस्टर्ड सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत अपने आप को प्रस्तुत करते हो।

                   नोटिस प्राप्त हो जाने के बाद ट्रिब्यूनल याचिकाकर्ता के बच्चो और संबंधी को सुनवाई का मौका देती है तथा ट्रिब्यूनल भरण पोषण के लिए इनक्वायरी करवाती है । इनक्वायरी करवाने के लिए ट्रिब्यूनल वही कदम उठाती है जो पहले से ही राज्य सरकार द्वारा कार्यवाही में उपयोग की जा रही हो या  उचित करवाई का आदेश देती हैं।

         जब कोई याचिका सीनियर सिटीजन सेल में की जाती है तो किसी भी पार्टी को प्रस्तुत करने के लिए वकील कि आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि यहां दोनो पार्टी के पास ये अवसर होता है की वह स्वय ही अपने बयान को ट्रिब्यूनल में दे,या पार्टी किसी को  भी ऑथराइज्ड करती है जो की   ट्रिब्यूनल में सुनवाई के दौरान वादी को पक्ष को प्रस्तुत करती है। ,यदि सीनियर सिटीजन चाहे तो   मेंटेनेंस ऑफिसर सीनियर सिटीजन या माता  पिता के पक्ष को प्रस्तुत कर सकते है ,यदि सीनियर सिटीजन ऐसा चाहते है तो।  मेंटेनेंस ऑफिसर जो की सीनियर सिटीजन को पक्ष को प्रस्तुत कर रहा है उसका पद  राज्य सरकार के डिस्ट्रिक सोशल वेलफेयर  के समकक्ष होना चाहिए।

             यद्यपि सीनियर सिटीजन एक्ट के अनुसार किसी भी  भरण पोषण की याचिका  पर सुनवाई 90दिन के अंदर समाप्त  हो जानी चाहिए ,याचिकाकर्ता को भरण पोषण के लिए अत्यंत आवश्यक होता है मेनटेंस की जिससे वो सामान्य जिंदगी जी सके,इसके लिए एक्ट में अंतरिम मेंटेनेंस की जोड़ा गया है  ।कभी कभी विशेष मामले में 90दिन में याचिका पर सुनवाई नहीं हो पाती है तो उसको 30दिन और बढ़ाया जा सकता है। जब भरण पोषण के आवेदन पर सुनवाई चल रही होती  है जैसे इनक्वायरी आदि तो समय समय पर ट्रिब्यूनल याचिकाकर्ता के बच्चो या संबंधी को अंतरिम भरण पोषण के तौर पर पैसे देने को बोल सकती है।ऐसा सीनियर सिटीजन एक्ट के सेक्शन 5में कहा गया है।

                  अगर ट्रिब्यूनल इस बात से संतुष्ट हो जाती है बच्चों ने या उनके संबंधी ने जान बूझकर सीनियर सिटीजन को त्याग दिया है उनका मासिक खर्चा तय कर देती है ।पर मासिक खर्चा 10,000 प्रति महीने से ज्यादा नहीं होनी चाहिए ।

       ट्रिब्यूनल मेंटेनेंस के अमाउंट की पूर्ति नहीं होने पर उस अमाउंट पर 5%या 18%तक का ब्याज लगा सकती है ।और याचिकाकर्ता उस अमाउंट को पा सकता है।

                अगर किसी भी प्रतिवादी की मौत हो जाती है तो किसी भी दूसरे प्रतिवादी के उपर उसके हिस्से को  अदा करने का दबाव नहीं होता है। 

            ट्रिब्यूनल खर्चा का आदेश उसी दिन से देती है जब की याचिका ट्रिब्यूनल में की जाती है साथ ही साथ उसका खर्चा के भी आदेश करती है जो की पूरी प्रोसिडिग में सीनियर सिटीजन को उठाना पड़ता हैं। सीनियर सिटीजन के बच्चों या उनके संबंधी को खर्चा के आदेश के 30दिनों के अंदर ये रकम अदा करनी होती है या जैसा आदेश होता है।

         जब  प्रतिवादी ट्रिब्यूनल के भरण _पोषण के आदेश को पूरा नहीं करती है तो ट्रिब्यूनल अपने सभी आदेश के लिए रिकवरी का  वारंट जारी करती है और जुर्माना स्वरूप भरण पोषण के लिए रकम वसूल करती है।प्रत्येक महीने के लिए अलग अलग वारंट जारी करती है और दोषी को 1महीने कि कारावास की सजा दे सकती है या जब तक की दोषी भरण पोषण की रकम को जितनी जल्दी जमा कर दे।सीनियर सिटीजन या माता पिता को भरण पोषण के पूर्ति रकम को तीन महीने के अंदर रिकवरी के एप्लीकेशन के रूप में ट्रिब्यूनल में फाइल करना होता है जब से भरण पोषण नहीं दिया गया है।

            ट्रिब्यूनल सीनियर सिटीजन या माता _पिता को भरण पोषण के आदेश के प्रति या प्रोसिडिंग के कागज़ात बिना किसी मूल्य के प्रदान करवाई जाती है।

      जहां अधिकरण को ये लगता है की उनके द्वारा दिए गई सीनियर सिटीजन के रख रखाव के भत्ता में परिवर्तन की आवश्यकता है तो  वह अपने आदेश में भी परिवर्तन कर सकती है जैसे की उनको द्वारा  आदेश में परिवर्तन की कार्यवाही निम्न बातों पर निर्भर करती है______

* अगर किसी तथ्य को अधिकरण के समक्ष सही ढंग से नहीं पेश किया गया हो।

* अगर तथ्य में कोई गलती हो गई हो।

*अगर किसी ऐसे  व्यक्ति के परिस्थिति में ही बदलाव आ गया  हो जिसके गुजारा भत्ता के लिए अधिकरण ने आदेश दिया था या गुजारा भत्ता देने वाले व्यक्ति की स्थिति बदल गई हो।

*और यदि किसी  माननीय दीवानी अदालत द्वारा कोई  आदेश पारित किया गया हो।

       सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल के किसी भी आदेश का अपील 60 दिनों के अंदर जिस दिन से आदेश दिया गया है उससे 60दिन के अंदर अपील अपीलेट ट्रिब्यूनल में किया जाएगा जिसका मुख्य राज्य सरकार का कोई ऐसा अधिकारी होगा जिसका रैंक डिस्ट्रिक मेजिस्ट्र से काम नहीं होगा।

      जब भी कोई वादी अपील में जाते है तो किसी भी वकील के जरूरत नहीं होती है , अपनी बात को व्यक्ति अपने आप भी रख सकते है या किसी को ऑथराइज्ड कर सकते है जो वादी के बात को डी सी के समक्ष प्रस्तुत कर सकते है।

      जब कोई आदेश अपीलेट ट्रिब्यूनल द्वारा दिया जाता है us आदेश को कही चैलेंज नही किया जा सकता है दूसरे शब्दो में अपीलेट ट्रिब्यूनल के आदेश का कही अपील नहीं होता है।

अपीलेट ट्रिब्यूनल के आदेश की प्रति दोनो पार्टी को बिना किसी मूल्य के प्रदान की जाती है।

              अगर कोई व्यक्ति किसी सीनियर सिटीजन का देखभाल कर रहा होता है ,और उस सीनियर सिटीजन या अपने पैरेंट्स का पूर्णतया परित्याग करता है तो उसका ये कार्य दंडनीय अपराध होता है।जिसमे अधिकतम 3महीने के सजा या 5000का जुर्माना लगाया जा सकता है जिसका ट्रायल मजिस्ट्रेट कोर्ट में होगा।(सेक्शन 24 से 25)!