अगर आप ने कोई फ्लैट बुक किया है और आपको बिल्डर समय पर फ्लैट नहीं दे रहा हो तो आप क्या लीगल कदम ले सकते है ।अपना घर हो ये हर व्यक्ति की चाहत होती है जिसको पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी कमाई के पैसे को जोड़े कर अपने लिए घर बुक करते है ,पर जब उस घर को बिल्डर समय पर नहीं देते है तो व्यक्ति की मनस्थिति विचलित हो जाती है।

               पर जो बिल्डर अपने ग्राहक के साथ ऐसा करते है उसके लिए  ग्राहक अपनी सुरक्षा के लिए कानून की मदद ले सकते है ._____

                      सब से पहले बिल्डर के पास अपने वकील से नोटिस भेजें जिस में ब्याज और हर्जाने के साथ अपने द्वारा दिए गए राशि को मांगने का दावा करे ।

             इसके बाद  भी अगर बिल्डर  आपकी बात नहीं सुनता है तो आप बिल्डर के खिलाफ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत् उपभोक्ता सेवा में कमी के लिए शिकायत दर्ज करवा सकते है।

                   ग्राहक को संपत्ति के मूल्य या नुकसान की मात्रा के आधार पर अधिनियम के अधीन स्थापित उचित उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम के समक्ष एक लिखित शिकायत दर्ज करने की आवश्यकता होती है। किसी भी वाद को कहा दायर किया जाए ये विवादित संपत्ति के मूल्य पर निर्भर करता हैं।20 लाख से कम मूल्य के संपति विवाद के लिए जिला आयोग उपभोक्ता फोरम में दायर कर सकते है।20लाख रूपये से अधिक मूल्य के किसी भी सम्पत्ति का विवाद को राज्य उपभोक्ता आयोग में दायर करना होता है और 1 करोड़ से अधिक मूल्य के संपति विवाद के लिए सीधे नेशनल उपभोक्ता फोरम मे न्यू दिल्ली में दायर किया जा सकता है।

               जब किसी भी फ्लैट को बुक किया जाता है तो क्रेता और विक्रेता के बीच एक लिखित अनुबंध पर हस्ताक्षर होता है जिसके कारण अनुबंध के पूरा नहीं होने पर आप भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872के अधीन भी अदालत में केश कर सकते है। क्रेता अपने होने वाले नुकसान के लिए कोर्ट से कानूनी रूप से सम्बन्धित क्षेत्र में चल रहे बाजार मूल्य पर वैकल्पिक आवास खरीदने के लिए आवश्क धन का दावा कर सकती है,या क्रेता बिल्डर को दिए गए धन का दावा, ब्याज सहित भुगतान के लिए  कर सकती है।

             इसके अलावा फ्लैट का क्रेता जहा  पर फ्लैट है उस राज्य के RERA(रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) के पास अपने धन की वापसी ब्याज सहित बिल्डर से पाने के लिए अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती है ।रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी को बनाने का मुख्य उद्देश था कि रियल एस्टेट में होने वाले विवादो को निवारण करना इसकी स्थापना 2016 मे किया गया। इसके तहत चाहे संपति की राशि कुछ भी हो आप केश कर सकते है  लेकिन उन मामलों में जहां अधियोग प्रमाणपत्र पहले ही प्रदान किया जा चुका है वहां पर आप रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी में शिकायत दर्ज नहीं करवा सकते है , ये केवल क्रेता को बिल्डर द्वारा फ्लैट पर कब्जा देने से पहले तक ब्याज या मासिक ब्याज के साथ भुगतान का कुल रिफंड प्राप्त करने की अनुमति देता है। रेरा अधिनियम के तहत प्रत्येक मामलो को आम_तौर पर 60दिनों के भीतर खत्म करता है। 

              दूसरी तरफ सरकार ने नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल बनाया है ,यदि बिल्डर अपने रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट को पूरा करने या जारी रखने में अपनी असमर्थता बताता है तो 2016 में स्थापित इंसॉल्वेंसी की और बैंकरप्सी कोड के तहत क्रेता द्वारा इंसॉल्वेंसी की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्युनल पंजीकृत कम्पनियों के लिए उन मामलों को हल करती है जिनकी वित्तीय स्थिति खराब है, जिनकी की राशि 1लाख रुपए से अधिक है। कंपनी के मालिक को कंपनी के विघटन के साथ मुआवजा देता है उन्हें अपने हिस्से का दावा करने में सक्षम बनाता है किसी मामले को हल करने के लिए लिया गया निर्णय का समय (अधिनियम के अनुसार) आमतौर पर 9से 12महीनो के भीतर होता है।

          यदि क्रेता को कुछ महीनो या वर्ष में फ्लैट पर कब्ज़ा मिलना तय है,तो वह उस धन के लिए मुआवजा का दावा कर सकता है जिससे वह वैकल्पिक आवास किराए पर ले सके ,यह तब लागू होगा जब क्रेता पहली बार घर खरीदने वाला हो,और उसकी इमारत का पुनर्विकास किया जा रहा हो।

          विक्रेता के द्वारा होने वाले विलंब के लिए क्रेता अपने होने वाले नुकसान के लिए भरपाई का दावा विक्रेता से कर सकता है,और यदि क्रेता को अपने होने वाले नुकसान के लिए कोर्ट के पास जाना पड़ता है,क्रेता मुकदमा पर होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए भी कोर्ट में याचिका में मांग सकता है।

         पर इस प्रकार के याचिका में सबसे मुख्य बात ये है कि बिल्डर और क्रेता के बीच जो समझौता हुआ है उस में कौन कौन से बिन्दु निहित है इसलिए जरूरी ये है जब आप कोई ऐसा समझौता करते है तो जो भी अनुबंध है उसके है लाइन को पढ़े। बिल्डर की  वित्तीय विश्वसनीयता और फ्लैट का कब्जा पर समय  सीमा का क्या उल्लेख का जांच भी कर लेनी चाहिए ।यदि आप उन अनुबंध के साथ समझौता पर हस्ताक्षर करते है,तो आपको न्यायिक प्रक्रियाओं में भी राहत उसी अनुबंध के अनुसार मिलेगा।