हिन्दू उतराधिकार अधिनियम, हिन्दू कोड बिल के अंतगर्त पारित कई कानूनों में से एक है,हिन्दू उतराधिकार अधिनियम 1956 में विवाहित बेटी को हिन्दू अविभाजित परिवार का हिस्सा माना गया और उनको पिता की सम्पति में कोंई अधिकार नहीं दिया गया था,पिता अगर अपने वसीयत में बेटी को अधिकार देते थे तभी उनको पिता की वसीयत के अनुसार अधिकार मिलता,भारत के संसद में 9 सितबर 2005 हिन्दू उतराधिकार अधिनियम, बदलाव किया गया और बेटियों को अपने पिता की सम्पति पर बेटो के समान उतराधिकार दिया गया |
इस कानून पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई लीडिंग जजमेंट दिया है जिनमें मुख्य ये है -----
साल 2015 प्रकाश बनाम फूलवती के वाद में सर्वोच्च न्यायालय के दो जजों की खंड पीठ ने ये कहा की अगर पिता की म्रत्यु 9 सितबर 2005 से पहिले हुआ हों तो बेटी को अपनी पिता की सम्पति पर उतराधिकार प्राप्त नहीं होगा |
2018 में दूसरा केश दनाम्मा बनाम अमर का जिसमे सर्वोच्च न्यायालय के दो जजों की खंड पीठ ने ये कहा की अगर पिता की म्रत्यु 2001 से पहिले भी हुआ हों तो बेटी को अपनी पिता की सम्पति पर उतराधिकार प्राप्त होगा |
11 अगस्त २०२० को विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा के केश में तीन जजों के खंड पीठ ने कहा बेटीयाँ हमेशा अपनी पिता की संतान होती है और उनको वो सभी उतराधिकार जन्म से ही दिया गया | अब बेटो की तरह ही बेटी को सभी अधिकार प्राप्त है, और कर्तव्य भी समान है |