हर शिव भक्त अपने जीवनकाल में एक बार केदारनाथ और बाबा बर्फानी के दर्शन जरूर करना चाहता है।
धार्मिक व्यक्ति किसी न किसी देवी देवता के अनुआयी होते हैं| और अपने आराध्य देव के दर्शन के लिए कई तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं| भगवान शिव के हर भक्त की एक ही चाह होती है कि वो एक बार अवश्य केदारनाथ और बाबा बर्फानी के दर्शन के सके|दरअसल अमरनाथ धाम को हिंदू धर्म के पवित्र व प्रमुख तीर्थस्थलों में एक माना जाता है, जोकि भारत के जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर समुद्रतल से 13,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है| जैसा की सभी भक्तों को पता है कि इन दोनों तीर्थ स्थलों की यात्रा बहुत ही कठिन है, अमरनाथ यात्रा के लिए बहुत ही कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है| जिसे बहुत ही जटिल चढ़ाई मानी गई है| इसके बावजूद भी भोले भंडारी के भक्त साल भर इस यात्रा के शुरुआत होने की प्रतीक्षा करते रहते हैं| हर वर्ष ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु शिवजी के दर्शन करने के उद्देश्य से अमरनाथ यात्रा करने हेतु तत्पर रहते हैं| इस साल 2023 में अमरनाथ धाम की यात्रा 1 जुलाई 2023 से शुरू होने वाली है। यह यात्रा 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी। सरकार के द्वारा अमरनाथ यात्रा के लिए शेड्यूल भी जारी कर दिया है। इस यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रकिया ऑनलाइन और ऑफलाइन 17 अप्रैल 2023 से शुरू की जा चुकी है।
अमरत्व की इन कहानी से जुड़ी है अमरनाथ की कथा :
भगवान शिव के भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बाबा अमरनाथ को माना जाता है| इसके पीछे यह मान्यता है कि इसी जगह पर देवों के देव महादेव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था| यह मान्यता है कि जब माता पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व का रहस्य जानने की इच्छा प्रकट की तो भगवान शिव उन्हें इसका राज बताने के लिए हिमालय पर्वत के इस एकांत क्षेत्र में लेकर आए, ताकि इसे कोई और न सुन सके, लेकिन जिस समय वे माता पार्वती को इसका रहस्य बता रहे थे, उसी समय जन्में शुक-शिशु ने सुना और शुकदेव ऋषि के रूप में अमरत्व को प्राप्त किए हैं ,मान्यता है कि बाबा अमरनाथ के धाम पर दिखाई पड़ने वाले कबूतर के जोड़े को भी अमरत्व का राज जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो आज तक वहां पर मौजूद पाए जाते हैं,अमरनाथ यात्रा पर जाने वाला कोई शिव भक्त कबूतर के इस जोड़े को शिव के गण के रूप में तो कोई शिव-पार्वती के रूप में देखता है| पौराणिक मान्यता यह है कि जिन लोगों को कबूतर के जोड़े का दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, उनकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होती है|
कैसे बनता है बर्फ का शिवलिंग :
मान्यता है कि बाबा बार्फानी के शिवलिंग का निर्माण हर साल प्राकृतिक रूप से होता है चंद्रमा की रोशनी के आधार पर यह शिवलिंग घटता-बढ़ता रहता है| बर्फ से बने इस शिवलिंग का निर्माण गुफा की छत से पानी की बूंदों के टपकने से होता है| यहां का तापमान और पानी के बूंदे इतनी ठंडी होती हैं कि नीचे गिरते ही वह बर्फ का आकार ले लेती है और धीरे-धीरे इसी बर्फ से तकरीबन 12 से 18 फीट ऊंचा शिवलिंग प्राकृतिक रूप से अपना आकार ले लेता है|
आइये जानते हैं किसने किए सबसे पहले बाबा के दर्शन :
पौराणिक कथाओं की मान्यता के अनुसार एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई थी उस समय कश्यप ऋषि ने वहां पर इकट्ठे हुए पानी को नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के माध्यम से बहा दिया था | उसी समय भृगु ऋषि वहां से गुजरे और उन्होंने जल का स्तर कम होने पर हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं में सबसे पहले अमरेश्वर यानि बाबा अमरनाथ के दर्शन किए थे| वैसे ही बाबा अमरनाथ के इस पावन तीर्थ से जुड़ी एक और लोककथा भी सुनी गई है, जिसके अनुसार एक बार जंगल में पशुओं को चराते समय एक गड़ेरिये की मुलाकात एक साधु से हुई, साधु ने उसे एक कोयले से भरी कांगड़ी प्रदान की ,जब वह गड़रिया अपने घर पहुंचा तो उसके कांगड़ी में कोयले की जगह सोना पाया गया | इस घटना से हैरान होकर वह जंगल में उसी स्थान पर साधु को धन्यवाद देने पहुंचा लेकिन उसे वहां साधु तो नहीं मिला लेकिन गुफा में वह शिवलिंग था जिसे बाद में बाबा बर्फानी के रूप में जाना जाने लगा |