मृत्यु कालिक कथन का भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872   में बहुत ही  महत्वपूर्ण धाराओं में से एक माना गया  है। मृत्यु कालिक कथन की अवधारणा ये है ,कोई भी मरने वाला व्यक्ति मरते समय झूठ नही बोलता है। मृत्यु कालिक कथन एक ऐसा कथन है, जिसको अदालत में क्रॉस नही किया जा सकता है। ,यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया जाता है जो मरने वाले व्यक्ति से सुनता है और अदालत में पेश करता है ,फिर भी अदालत द्वारा ये ग्राहय होती है। अधिनियम की धारा 32 में 8 ऐसी स्थिति की चर्चा की गई है, जिसमे साक्षी के अदालत में पेश नहीं होने पर भी उनको कथन को अदालत में साक्ष्य के रूप में पेश किया जा सकता है , धारा 32 में वैसे लोगो के कथन के बारे कहा गया जो मर चुके है या जिन्हें अब किसी कारणवश कोर्ट में साक्ष्य के रूप नही बुलाया जा सकता है ये  परिस्थिति निम्न है____________________

1.जबकि ऐसे कथन का संबंध मृत्यु के कारण से हो।

2.जबकि ये कारोबार के अनुक्रम में किया गया हो

3.यदि वो करने वाले के हित के विरुद्ध है।

4.यदि इसका संबंध किसी लोक कर्तव्य या प्रथा से हो।

5.यदि इसका संबंध किसी के नातेदारी से है।

6.या किसी पारिवारिक वसीयत से सम्बन्धित है।

7.यदि इसका संबंध किसी ऐसे संव्यवहार से है जिसका प्रावधान धारा 13के उपधारा (A) में है और ये यदि किसी दस्तावेज में और इसको लिखने वाले की मृत्यु हो चुकी है ,जिनको को अब हम कोर्ट नही बुला सकते है।

8.यदि ये कई लोगो द्वारा किया गया है,और इसका संबंध किसी ऐसे विवादित प्रश्न से है तो वह अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

             यदि किसी व्यक्ति ने अपने बयान इन 8 परिस्थितियों में दिया है और अब वो अदालत में पेश नहीं हो सकता है ।जैसा कि यदि उसकी मृत्यु हो गई या किसी कारणवश उसकी मानसिक स्वास्थ्य खराब हो गया हो या अब वह शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं हो।या अब वो अदालत आकर साक्ष्य देने के लिए नहीं आ सकता है तब इन आठ परिस्थित में उसके द्वारा दिए गए साक्ष्य अदालत में मान्य होगा ।पर इस आलेख में हम केवल मृत्यु कालिक कथन की ही चर्चा करते है।

                             मृत्यु कालिक कथन एक ऐसा कथन होता है जो या तो लिखा हुआ होता है या बोला हुआ होता है। ,मृत्यु कालिक कथन वो होता है जब कोई व्यक्ति अपने मृत्यु के कारण ,संव्यहार या उन परिस्थितियों के बारे में बताता है जिसमे उसकी मृत्यु होती है तो उसे मृत्यु कालिक कथन कहते है।जैसे उसको किस प्रकार मारने का प्रयास किया गया है।इसका वर्णन नियम के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के उपधारा 1में की गई है।मृत्यु कालिक कथन के बारे में ये कहा जाता है की ऐसा व्यक्ति जो मर रहा होता है हमेशा सच बोलता है ।यह विचार एक फ्रेंच शब्द Leterm mortem से ले गई है।इस शब्द के अनुसार मरने वाला व्यक्ति अपने मालिक के पास झूठ के साथ नही जाना चाहता है,इसलिए वो सच बोलता है। मृत्यु कालिक कथन अपवाद स्वरूप है ,जब भी कोई ऐसा साक्ष्य होता जो सुनी हुई बात करता है तो वह मान्य  नहीं होता है,पर मृत्यु कालिक कथन भी सुनी हुई होती है जिसको अभियोजन पक्ष अदालत में पेश करते है पर यह अदालत में मान्य होती है।

                 इसके कुछ मुख्य केश  जिसमे में माननीय न्यायालय ने बताया है की किन परिस्थितियों में ये अदालत में मान्य होगा,

1. उल्का राम बनाम राजस्थान राज्य माननीय न्यायालय द्वारा ये कहागया है जब कोई  कथन किसी ऐसे  व्यक्ति द्वारा किया हो जिसका संबंध उसके मृत्यु से है,या ऐसे मामलों में जहां उसकी मृत्यु ही प्रश्न में हो ,तो ऐसे मामलों में उस व्यक्ति का मृत्यु कालिक कथन अदालत में मान्य होगा।कानून की भाषा में ऐसे कथन ही मृत्यु कालिक कथन होते है।   

2.पी. वी राधा कृष्णा बनाम महाराष्ट्र राज्य इस केश में माननीय न्यायालय ने ये कहा की मृत्यु कालिक कथन अदालत में मान्य है यह लैटिन भाषा के कथन "Namo mariturus presumuntur mentri"पर आधारित है जिस में ये कहा गया है मरने वाले व्यक्ति के जीभ पर सच्चाई होती है और ऐसे व्यक्ति द्वारा दी गई सूचना  भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के अंतर्गत  अदालत में मान्य होती है।

3. केसर पकला नारायण स्वामी बनाम इंपीरियल ।

 4. वजीर चंद बनाम हरियाणा सरकार।

 

     मृत्यु कालिक कथन कैसे किया जाए ऐसा इसका कोई प्रारूप नही दिया गया,बल्कि मृत्युकालिक कथन ऐसा होना चाहिए जिसको  साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सके

कोर्ट के मानती है कि अगर मृत्यु कालिक कथन  प्रश्न उत्तर के प्रारूप में ही केवल मान्य नहीं है ,बल्कि इसका वर्णित होना ही  प्राकृतिक होगा  जिससे ये पता चलता हो की मृत्यु के समय वह क्या सोच रहा था और उसके साथ उस समय क्या हुआ। कभी _कभी  मृत्युकालिक कथन को इशारे से भी किया जा सकता है,इसका  एक मुख्य केश क्वीन इंप्रेस बनाम अब्दुल्ला।

इस केश में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा की मृत्यु कालिक कथन में यदि मृतक किसी के तरफ इशारा करता है और उस इशारे को कौन रिकॉड करता है इस बात पर भी निर्भर करता है।ये किसी भी  भाषा में की जा सकती है।

            यदि किसी व्यक्ति का  स्टेटमेंट देने से पहले ही मृत्यु हो जाती है तो वो मृत्यु कालिक कथन अदालत में मान्य नहीं होगा । कथन के लिए किसी भी सर्टिफिकेट की कोई आवश्यकता नहीं होती। यदि दूसरा साक्ष्य मौजूद है। के रामचंद्र रेड्डी बनाम पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के मामले में जहां कोई व्यक्ति जिसको कोई क्षति पहुंचती है और वह अपना F.I.R  दर्ज करवाते हैं और अपने F.I.R में ये कहता है उसकी मृत्यु का कारण हो उस एफआईआर में दर्ज कारण से हो सकती है फिर वो मर जाता है उसकी ये कथन मृत्यु कालिक कथन कहलाती है।

                खुशहाल राव बनाम बॉम्बे  जिसमे apex court ने दिशा निर्देश दिया है कब और किन परिस्थितियों में मृत्यु कालिक कथन अदालत में मान्य होगा।

1. इसके लिए कोई भी कानूनी प्रारूप नही दिया गया ,फिर इसको किसी भी दूसरे संपोषण की आवश्यकता नहीं है।यदि ये सच्चा है।

2.मृत्यु कालिक कथन किसी भी दूसरे साक्ष्य से कम महत्वपूर्ण नहीं होता है,बल्कि ये दूसरे किसी भी साक्ष्य के बराबर ही महत्वपूर्ण होता है।

3.प्रत्येक मामले के तथ्यो और परिस्थितियों को ध्यान में रखे तभी ये मान्य होगा।

4.यदि कोई मृत्यु कालिक कथन किसी मजिस्ट्रेट के द्वारा रिकार्ड किया गया है और वह प्रश्न उत्तर के प्रारूप में है, मृत व्यक्ति के शब्दो में है तो इसको  सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य माना जायेगा।

5. मृत्यु कालिक कथन किसी भी भाषा में हो सकता है ।