लीप डे का निर्माण क्यों हुआ ?
प्राचीन काल में हमारे पूर्वज सूरज की स्थिति से दिनों का पता लगाते थे| लेकिन समय बदलने के साथ ही लोगों को कैलेंडर की जरुरत महसूस हुई,कलेण्डर के अविष्कार से मानव जीवन में कई सहूलियत के बारे में पता चला |
जूलियस सीजर ने 45 BC में, अपने जूलियन कैलेंडर में एक एक्स्ट्रा डे को शामिल किया| लेकिन इससे भी 11 मिनट प्रति सोलर ईयर का डिफरेंस दिखाई दे रहा था| इसके बाद 16वीं शताब्दी में पॉप ग्रिगोरी XIII ने ग्रिगोरियन कैलेंडर दिया, जिसमें लीप डे 29 फरवरी को शामिल किया गया, जिसमें बताया गया कि लीप डे उस साल में आएगा, जो कि 100 से भाग होने की बजाय 4 से हो जाएगा| साथ ही 400 से डिवाइड होने वाले साल को भी लीप ईयर ही कहा जाएगा|
वर्ष 2024 लीप ईयर है ,आइये जानते हैं लीप ईयर के विषय में -
इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे कि क्यों 29 फरवरी को लीप डे का दिन कहा जाता है| दरअसल लीप ईयर में फरवरी में 29 दिन होते हैं | इस साल भी 29 दिन का फ़रवरी महीना है , जबकि हर बार फरवरी 28 दिन की होती है | इस बदलाव का कारण कलेंडर को बैलेंस रखना है , कैलेंडर को बैलेंस रखने के लिए ही हर चाल साल बाद फरवरी महीने में 29 फरवरी की तारीख को जोड़ा जाता है|
इसकी विशेषता केवल वो नहीं है, जो हर चाल साल बाद आए, इसकी अपनी एक अलग मान्यता है ,जैसा कि सभी जानते हैं कि पृथ्वी के एक दिन में पूरे 24 घंटे न होकर 23.262222 घंटे होते हैं, वहीं, हर साल अगर 29 फरवरी की तारीख को जोड़ दिया जाए, तो कलेंडर 44 मिनट आगे हो जाएगा, जिसकी वजह से सभी मौसम और महीनों के बीच एक अलग प्रकार का डिफरेंस पैदा हो जाएगा , जिस को संतुलित करने में लीप ईयर मदद करता है|
29 फरवरी का दिन आने से सभी मौसम अपनी सही महीने में ही हर साल आते हैं| इस वजह से ही कैलेंडर में बैलेंस बना रहता है| 29 फरवरी का दिन कैलेंडर और पृथ्वी के ऑर्बिट के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है| अगर ये लीप डे न हो, तो मई-जून में आने वाली गर्मी नवंबर के महीने में पहुंच जाएगी|