घरेलू हिंसा कानून को बनाने व लागू करने का मुख्य उद्देश्य :

घरेलू हिंसा पर कानून भारत में २००५  में बना | घरेलू हिंसा कानून को बनाने व लागू करने का मुख्य उद्देश्य था भारत में औरतों पर हों रहे घरेलु हिंसा को रोकना और उससे उनको सुरक्षा प्रदान करना | इस कानून में ऐसी व्यवस्था की गयी है कि इससे न केवल शादी-शुदा महिला बल्कि वैसी हर महिला जो एक छत के नीचे किसी भी पुरुष के साथ रह रही हो और घरेलू हिंसा कि पीड़िता हों| शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व यौन शोषण घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है| इससे पहले इतना व्यापक कानून महिला के लिया नहीं बना था, जो उनको उनके घर में भी सुरक्षा प्रदान करे |

 

 

संक्षेप में

 

 

 

इस कानून में कहा गया है कि कोई भी महिला एक छत के नीचे, साथ रहने वाले किसी भी दोसी पुरुष के खिलाफ मुकदमा कर सकती है जिसके साथ वो किसी भी समय-विशेष में एक छत के नीचे रहे हों और अपनी रसोई भी साझा किया हों | बहन, माँ, सौतेले या गोद ली हुई बहने, माँ या बेटियाँ या फिर बिना विवाह के किसी पुरुष के साथ रह रही महिलाए (Live-in-relationship) जिनकि उम्र 18 वर्ष से ऊपर हो, अपने साथी पुरुष पर और उस समय- विशेष में उस परिवार या घर में रहने वाले दुसरे सदस्यों पर जिन्होंने हिंसा में उस पुरुष का साथ दिया हो, पर इस कानून के अंतर्गत मुकदमा कर सकती है |

 

 

 

संक्षेप में

 

 

इसके अंतर्गत  वो सभी प्रकार के कार्य जिससे महिला का मानसिक, शारीरिक, आर्थिक व यौन शोषण हुआ हों, जैसे की ताने देना, पैसे की मांग अनुचित रूप से करना, मारना –पीटना, गाली-गौलच करना, उसके रूप या उसके परिवार के बारे में गलत शब्दों का इस्तेमाल करना इत्यादि | इसकी  व्यापकता ये है की इसके अंतर्गत माँ अपने बेटे और बहु अपनी सास, ससुर, देवर, ननद व अन्य लोग जो उनके साथ रहते है और उनके साथ घरेलू हिंसा करते हों, पर मुक़दमा कर सकती है| ये कानून न तो पूरी तरह से दीवानी है और न हीं फौजदारी (क्रिमिनल और सिविल ) ये दोनों का मिला जुला रूप है|

 

 

 

इसके अंतर्गत  वो सभी प्रकार के कार्य जिससे महिला का मानसिक, शारीरिक, आर्थिक व यौन शोषण हुआ हों, जैसे की ताने देना, पैसे की मांग अनुचित रूप से करना, मारना –पीटना, गाली-गौलच करना, उसके रूप या उसके परिवार के बारे में गलत शब्दों का इस्तेमाल करना इत्यादि |

 

 

 

इस अधिनियम के अंतर्गत एक महिला अपने वकील की मदद् से अपने वाद को महिला न्यायालय के पास दर्ज कर सकती है और महिला न्यायालय पीड़िता को निम्नलिखित प्रकार की सहायता पहुंचाता है : - 

 (1)सुरक्षा का आदेश (धारा-18 घरेलू हिंसा अधिनियम) —  इस आदेश के अंतर्गत जब महिला अपना आवेदन देती है तो सबसे पहले महिला न्यायालय उस पर सुनवाई करती है और वो आदेश देकर प्रतिपक्ष को रोकती है –

 

 

 

इस कानून के अंतर्गत विकलांग पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं। इसे ऐसे समझें, अगर कोई महिला किसी मुस्लिम के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकार है, तो वह अपने पति, ससुराल वालों, पति की भाभी आदि के साथ याचिका दायर कर सकती है।

 

 

 

  • किसी भी ऐसा कार्य से जो कि घरेलू हिंसा हों,
  • किसी दुसरे व्यक्ति को घरेलू हिंसा करने से उकसाने के लिए,
  • प्रतिपक्षियों को महिला के कार्य –स्थान पर नहीं जाने का आदेश और अगर पीडिता कि कोंई बच्ची हों तो प्रतिपक्षियो को उनके विद्यालय में, या किसी भी दुसरे जगह पर जाने से रोकना 
  • किसी भी प्रकार के सम्पर्क स्थापित करने पर रोक लगा देती है चाहें वो किसी भी तरह का हों ,टेलीफोन इत्यादि |अगर दोनों का बैंक एकाउंट एक साथ हों तो स पर भी रोक लगा सकती है|   

 

 

 

 

इस कानून के अंतर्गत विकलांग पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं। इसे ऐसे समझें, अगर कोई महिला किसी मुस्लिम के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकार है, तो वह अपने पति, ससुराल वालों, पति की भाभी आदि के साथ याचिका दायर कर सकती है।

 

 

 

(2) महिला को रहने के लिए घर देने का आदेश (धारा-19 घरेलू हिंसा अधिनियम)- इस आदेश के द्वारा महिला न्यायालय पीड़िता को रहने के लिए घर देने का निर्देश प्रतिपक्ष को देती है वो प्रतिपक्ष के घर में रह सकती है या किराए के घर में जिसका किराया दोसी पुरुष देगा | इस आदेश के लिए जरूरी है कि पीड़िता के पास अपना घर ना हो 

 (3) आथिर्क आदेश (धारा-20 घरेलू हिंसा अधिनियम) इस आदेश के द्वारा पीड़िता को गुजारा भत्ता मिलता है जो की प्रतिपक्षी द्वारा कोर्ट मे दिया जाता है | इस आदेश के लिए जरूरी है कि महिला कामगार ना हो या अगर हो तो उसका वेतन पुरुष कामगार से काफी कम हो |

 (4) बच्चों को रखने का आदेश (धारा-21 घरेलू हिंसा अधिनियम

 

 

 

 (4) बच्चों को रखने का आदेश (धारा-21 घरेलू हिंसा अधिनियम) 

 

 

 (5) क्षतिपूर्ति का  आदेश (धारा-22 घरेलू हिंसा अधिनियम) इसके द्वारा घरेलू हिंसा से, पीड़िता को जो नुकसान होता है उसकी क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाता है|

 

संक्षेप में अधिनियम की मुख्य विशेषताओं का नीचे उल्लेख्य किया गया है :

धारा 17 के तहत निवास का अधिकार सुनिश्चित करता है।
आर्थिक हिंसा को मान्यता देता है और आर्थिक राहत सुनिश्चित करता है।
मौखिक और भावनात्मक हिंसा को पहचानता है।
बच्चे की अस्थायी अभिरक्षा प्रदान करता है।
केस दर्ज होने के 60 दिन के अंदर फैसला।
एक ही मामले में कई फैसले।

 

 

 (4) बच्चों को रखने का आदेश (धारा-21 घरेलू हिंसा अधिनियम) 

 

 


पार्टियों के बीच अन्य मामले लंबित होने पर भी पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए जा सकते हैं।
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों अपील कर सकते हैं।
आप किसके विरुद्ध याचिका दायर कर सकते हैं?
इस कानून के तहत किसी भी वयस्क पुरुष के खिलाफ शिकायत की जा सकती है जिसके साथ महिला का घरेलू संबंध हो। फिर चाहे वो एक पति, एक पिता, एक भाई या किसी अन्य रिश्तेदार की हो सकती है।
इस कानून के अंतर्गत विकलांग पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं। इसे ऐसे समझें, अगर कोई महिला किसी मुस्लिम के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकार है, तो वह अपने पति, ससुराल वालों, पति की भाभी आदि के साथ याचिका दायर कर सकती है।