जैसे जैसे समाज का विकास विकास होता रहा वैसे सबसे पहले वस्तु विनिमय प्रणाली आई उसके बाद पैसों का आदान-प्रदान होने लगा फिर बैंक बने और चेक द्वारा भुगतान किया जाने लगा,जब कोई व्यक्ति कोई ऋण लेते है तो वह उस लिऐ गए ऋण को चुकाए गा इसके लिए चेक जारी करते है,या जब कोई वस्तु खरीदते है तो भी चेक जारी करते है ।

                 और जब यही चेक बाउंस होता है तो इसे एक अपराध माना गया है जो व्यक्ति या प्राप्त करते हैं उस रास्ते पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट की धारा 138 के अधीन कानूनी कार्यवाही होती है जिसके तहत व्यक्ति को 2 साल तक का कारावास या जुर्माना दोनों से दंडित किया जा सकता है।

                 चेक बाउंस की प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे पहले यह समझना होगा कि जब हम किसी व्यक्ति से कोई लेन-देन करते हैं और उस लेनदेन या उधार के बाद किसी व्यक्ति को चेक जारी करते हैं तो वह नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट के अंतर्गत आता है, चेक एक पराक्रम लिखित दस्तावेज है,जिसके तहत बिना किसी शर्त के एक निश्चित राशि के भुगतान करने का वादा किया जाता है इसको दो तरीकों से किया जाता है

1. रेखा अंकित चेक भुगतान (क्रॉसड चेक)

2. खाता में सीधे भुगतान (अकाउंट पए)

चेक द्वारा भुगतान केवल उसी व्यक्ति को किया जाता है जिसका नाम प्राप्तकर्ता के रूप में चेक पर लिखा होता है sh1 को प्राप्तकर्त के बैंक खाते में जमा करना पड़ता है और वह अपना पैसा प्राप्त करते हैं।

       जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को चेक जारी करते हैं या चेक जारी करने वाला व्यक्ति चेक जारीकर्ता (ड्रॉअर) कहलाता है। जिसके लिए चेक जारी किया जाता है उसे प्राप्तकर्ता (पेई) कहां जाता है। जिस  बैंक को धनराशि का भुगतान करने का निर्देश दिया  जाता है या प्राप्त होता है उसे भुगतान करता या ड्राई कहा जाता है।

             कोई भी चेक अपने जारी किए गए तारीख से 3 महीने तक ही वैध होता है।जब कभी कोई चेक और सुकृत हो जाता है तो व्यक्ति जो कि चेक जारी करते हैं या प्राप्तकर्ता को किन-किन कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है उसका विवरण इस प्रकार है।

                जब एक चेक और अस्वीकृत हो जाता है तो भुगतान करने वाला बैंक तुरंत ही प्राप्तकर्ता के बैंक को चेक रिटर्न मेमो जारी करता है और भुगतान न करने का कारण बताता है इसके बाद प्राप्तकर्ता का बैंक प्राप्तकर्ता को और अस्वीकृत चेक और रिटर्न मेमो वापस कर देते हैं। यदि धारक या प्राप्तकर्ता को या लगता है कि दूसरी बार चेक को जमा करने पर उसे स्वीकार कर लिया जाएगा तो वह उस तारीख जबकि चेक जारी किया गया था के 3 महीने के अंदर पूना चेक को जमा कर सकता है लेकिन यदि चेक जारीकर्ता इसका दूसरी बार भी भुगतान करने में विफल रहता है तो धारक या प्राप्तकर्ता को जारीकर्ताकरता के विरुद कानूनी तौर पर मुकदमा दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

                  प्राप्तकर्ता चेक के अस्वीकृत होने पर चेक जारीकर्ता  करता के विरुद्ध कानूनी मुकदमा कर सकता है यदि चेक में उल्लिखित राशि या ऋण या किसी अन्य देनदारी के भुगतान के लिए चेक जारीकर्ता द्वारा प्राप्तकर्ता के लिए जारी किया गया है।

                 यदि अच्छे एक उपहार के रूप में जारी किया गया है, ऋण देने के लिए जारी किया गया हो या किसी गैर कानूनी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जारी किया जाता है तो ऐसे मामलों में चेक जारीकर्ता के विरूद्ध मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

         प्राप्त करता बैंक से चेक रिटर्न मेमो प्राप्त करने की तारीख 30 दिन के अंदर चेक जारी करता को नोटिस भेज सकता है लीगल नोटिस किसी वकील के माध्यम दिया जाता है, से जिसमें या उल्लेखित होना चाहिए कि चेक जारी करता को नोटिस प्राप्ति के तारीख से 15 दिनों के अंदर चेक राशि का भुगतान करना होगा।यदि चेक जारी करता 30 दिनों के भीतर भुगतान करने में विफल रहता है तो प्राप्तकर्ता नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट अधिनियम की धारा 138 के अधीन चेक जारीकर्ता के खिलाफ आपराधिक शिकायत मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में दर्ज करा सकते हैं।

             Negotiable instrument में 2018 में मैं संशोधन किया गया इस संशोधन के बाद शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्ति को 20 फ़ीसदी अंतरिम अंतरिम मुआवजा हासिल करने का अधिकार कोर्ट द्वारा दिया गया, इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 143A के तहत या प्रावधान किया गया है कि चेक बाउंस होने की स्थिति में जहां या मामला अदालत में लंबित हो तो आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को अंतरिम मुआवजा20% तक  देना होगा जिसका भुगतान 60 दिनों के अंदर करना होगा या आरोपी को कोर्ट द्वारा अतिरिक्त 30 दिन का समय दिया जा सकता है,यदि कोर्ट में आरोप सिद्ध हो जाने के बाद भी आरोपी अपील में जाता है तो सेक्शन 148 के तहत अपने लिए अपीलीय कोर्ट में भी आरोपी को  अंतरिम मुआवजा 20% का भुगतान करने काआदेश  अपीलीय कोर्ट  दे सकती है, यदि आरोपी निर्दोष साबित होता है तो शिकायतकर्ता को अंतरिम भुगतान की  रकम वापसी ब्याज सहित करने का  का आदेश कोर्ट दे सकती है ।

          इसलिए हमे सजग रहना चाहिए यदि हम जारी कर रहे हो या प्राप्त कर रहे होते है।