टी एन शेषन- वो नाम जिसने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किसी भी हद तक जाना स्वीकार किया. चुनाव सुधार के लिए जितने भी आवश्यक कदम थे सभी उठाए गए. भारत ने पहली बार एक मुख्य चुनाव आयुक्त को इतना क्रियाशील देखा था. चुनाव आयोग प्रायः नेपथ्य में काम करने वाली संस्था हुआ करती थी परन्तु टी एन शेषन ने एक मुख्य चुनाव आयुक्त के पद की गरिमा रखते हुए चुनाव को निष्पक्ष बनाये रखने के लिए कई कदम उठाए.
टी एन शेषन का जन्म 15 दिसंबर 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ था. उनका पूरा नाम तिरुनेलै नारायण अय्यर शेषन था. शेषन 1955 बैच के आईएएस अधिकारी थे. 12 दिसंबर 1990 को शेषन भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त हुए. भारत में चुनाव तो होता था पर बूथ लूटा जाना या उम्मीदवारों के द्वारा धांधली आम बात थी. शेषन के कार्यकाल में चुनाव व्यवस्था में व्यापक बदलाव हुए.
विभिन्न मंत्रालयों में काम करने वाले शेषन भारत के सबसे बड़े अफसर कैबिनेट सचिव भी बनाए गए. जिस मंत्रालय में गए संबंधित मंत्रालय के मंत्री का काम बेहतर होने लगा. जिन मंत्रियों के साथ उन्होंने काम किया चुनाव आयुक्त बनते ही उन सब से दूरी बना ली.
चुनाव आयुक्त के रूप में टी एन शेषन के काम
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1993 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव था. टी एन शेषन ने सभी जिला मजिस्ट्रेट, बड़े पुलिस अधिकारियों एवं वहां के सभी चुनाव पर्यवेक्षकों को सपष्ट रूप से कहा कि- चुनाव अवधि तक किसी भी प्रकार की गलती के लिए आप सभी जवाबदेह होंगे.
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उसी दौरान बिहार के बाहुबली नेता पप्पू यादव एवं उनके समर्थकों को बिहार-उप्र सीमा पर नागालैंड पुलिस ने रोक दिया और सीमा पार नहीं करने दिया.
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हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद ने अपने पुत्र के पक्ष में चुनाव प्रचार किया था जिसका खामियाजा उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देकर चुकाना पड़ा.
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टी एन शेषन ने उम्मीदवारों के चुनाव खर्च को कम करने की पहल की.
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टी एन शेषन ने चुनाव में चुनाव पहचान पत्र का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया.
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तत्कालीन राजनेताओं ने टी एन शेषन के इस रुख का विरोध किया और कहा कि इस देश इतनी खर्चीली चीज का औचित्य नहीं है.
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टी एन शेषन ने राजनेताओं के प्रश्न का दो टूक जवाब दिया यदि पहचान पत्र नहीं बने तो 1 जनवरी 1995 के बाद भारत में कोई चुनाव नहीं कराए जाएंगे.
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अपने कार्यकाल में टी एन शेषन कई राज्यों के चुनाव रद्द किए क्योंकि वहां मतदाता पहचान पत्र नहीं बन सके थे.
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टी एन शेषन के चुनाव आयुक्त बनने से पूर्व आम आदमी इस पद के महत्व को नहीं समझता था. शेषन ने चुनाव को पारदर्शी बनाने के लिए मतदाता पहचान पत्र को अनिवार्य कर दिया.
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2 अगस्त, 1993 को रक्षाबंधन के दिन टीएन शेषन ने एक 17 पेज का आदेश जारी किया कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नही देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा.
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शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
टी एन शेषन का व्यक्तिगत जीवन
शेषन को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स रखने का शौक था, पर उनका इस्तेमाल शायद ही कभी करते थे. महंगे कलम का शौक रखने वाले शेषन सस्ते बॉल पेन से लिखते थे. कोई बच्चा यदि उनसे मिलता था तो वो कलम भेंट करते थे.
अपने जीवन काल में बड़े नेताओं और अफसरों से इनके रिश्ते काफी तल्ख़ रहे. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव एवं हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद शेषन ने किसी को नहीं बख्शा.
चुनाव आयोग को एक शक्तिशाली संस्था बनाने के लिए शेषन अपनी हदों के आगे चले गए. 10 नवम्बर 2019 को शेषन इस दुनिया से चले गए पर हम भारतीयों को लोकतंत्र की एक मजबूत नींव देकर गए.