सजा के बिंदु पर दोषी को सुनने के बाद अदालत सजा के बाद दोषी को या तो परिवीक्षा पर रिहाई का आदेश दे सकते हैं,पर ऐसा हर तरह के अपराध में नहीं होता है कि अभियुक्त अभियोजन की परिवीक्षा पर रिहाई का आदेश दे सकती हैं, पर ऐसा हर तरह के अपराध में नहीं होता है कि अभियुक्त अभियोजन की परिवीक्षा की छूट या रियायत का हकदार हो।
कभी-कभी अपराध की सजा बहुत ही कम होती है या अपराधी के सुधरने की की स्थिति होती है तो कोर्ट सजा प्राप्त व्यक्ति को इस हिदायत और चेतावनी के साथ छोड़ दी है कि भविष्य में वह अपने इस कृत्य को दोबारा ना करें।
दोषी को स्वयं को सुधारने का अवसर देने के लिए परिवीक्षा पर रिहा किया जाता है। आमतौर पर ऐसे दोषी को परिवीक्षा पर यहां किया जाता है जब दोषी की उम्र 21 वर्ष से कम हो या जहां अपराध के लिए प्रदान की गई सजा 7 वर्ष से कम हो और अभियुक्त पहले इस तरह का कोई भी अपराध नहीं किया था इस संबंध में अपराधियों को परिवीक्षा अधिनियम और सी.आर.पीसी. की धारा 360 के प्रावधान के संदर्भ में किया जा सकता है।
परिवीक्षा पर किसी भी अपराधी को छोड़ने से पहले उसके चरित्र उसकी उम्र तथा उसके द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखा जाता है। परिवीक्षा पर एक दोषी को रिहा करने से पहले अदालत जिला पर्यवेक्षक अधिकारी को रिपोर्ट के लिए बुलाती है उस रिपोर्ट के लिए जिला परीक्षा अधिकारी दोषी का साक्षात्कार करता है तथा दोषी के इलाकों का दौरा करते हैं जहां अपराधी निवास करता है या निवास कर रहा है ताकि व्यक्तियों से उसके प्रवृत्ति के बारे में जानकारी एकत्र कर सके। स्थानीयता और दोषी के परिवार के सदस्य के दोषी के बारे में जानकारी लेते है,तब जिला परिवीक्षा अधिकारी की अपनी रिपोर्ट कोर्ट में देते है उस रिपोर्ट पर विचार करने के बाद अदालत दोषी को परिवीक्षा का लाभ देने से इंकार कर सकती है।
वह अवधि जिसके लिए प्रोफेशन पर दोषी को रिहा किया जाता है, हमेशा निर्णय में निर्दिष्ट किया जाता है। जमानत के साथ या बिना जमानत के न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। परिवीक्षा की अवधि के दौरान दोषी का व्यवहार अच्छा होना चाहिए या भी माना जाता है कि दोषी अदालत के समक्ष जब पेश होगा और यदि दोषी द्वारा जमानत या परिवीक्षा के शर्तो का उल्लंघन किया जाता हैं तो दोषी को अदालत द्वारा आवश्यक सजा दी जाएगी,उसे यह सजा तब तक दी जा सकती हैं जब तक की परिवीक्षा की अवधि समाप्त नहीं हो जाती है,और उसे एक ही मामले में सजा सुनाई जा सकती है।दोषी के उपर जुर्माना भी लगा सकती।और यदि जमानत की राशि को भी कोर्ट में जमा करवा सकती है।कभी _कभी अदालत दोषी को जिला परिवीक्षा अधिकारी के देख_रेख में परिवीक्षा पर रिहा करने का आदेश दे सकती है। ऐसे मामलों में दोषी को जिला परिवीक्षा अधिकारी के सामने समय अनुसार पेश अवश्य होना पड़ता है ताकि वह जिला परिवीक्षा अधिकारी के निगरानी में रह सके।जब किसी दोषी को परिवीक्षा पर रिहा किया जाता है तो यह उसके हित में होता हैं पर उसको इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह अदालत के किसी भी आदेश का उल्लंघन ना करे या दूसरे शब्दो में अदालत के आदेश का सभी शब्द का या शर्तो या पालन करे।
सजा जहां दोषी को परिवीक्षा पर रिहा नहीं किया जाता है वहा अदालत द्वारा दोषी पर जुर्माना लगाया जाता है या कारावास की सजा सुनाई जा सकती हैं या फिर दोनो दिया जाता है ,कारावास की सजा सरल या कठोर भी हो सकता है,या मौत की भी सजा दी जा सकती है ये उसके द्वारा की गई अपराध की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।
आरोपी द्वारा सजा के मामले में जमानत याचिका दायर करना
_जब भी सजायाफ्ता भक्ति अदालत को संतुष्ट करता है, जो अदालत उसे दोषी ठहराता है,की वह अपील पेश करने का इरादा रखता है तो अदालत उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश देती है। अदालत केवल ऐसे व्यक्ति को ही जमानत देती है जब ऐसे व्यक्ति को अदालत द्वारा 3 साल की अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाती है ,और वह सजा से पहले जमानत पर था, जमानतदार भी जमानत का दोषी होने पर जमानत का हकदार होता है। और वह जमानत पर होता है, ऐसी स्थिति में कारावास की सजा निलंबित मानी जाती है। अपील के पेंडेसी के दौरान जमानत की ऐसी राहत भी अपीलीय अदालत द्वारा दी जा सकती हैं जैसा कि सीआरपीसी की धारा 389 में निर्दिष्ट किया गया है।