रक्षाबंधन: प्यार, सुरक्षा और रिश्तों की डोरी का त्योहार
राखी सिर्फ एक धागा नहीं, एक भावना है।
यह त्योहार भाई-बहन के उस अनमोल रिश्ते का प्रतीक है, जिसमें प्यार, तकरार, और अपार स्नेह छुपा होता है। रक्षाबंधन का पर्व हमें याद दिलाता है कि परिवार के बंधन सिर्फ खून से नहीं, भावनाओं से भी बनते हैं।
रक्षाबंधन का महत्व
प्राचीन काल से ही रक्षाबंधन एक पवित्र परंपरा के रूप में मनाया जाता रहा है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा-सूत्र (राखी) बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन की रक्षा और सुख-शांति का वादा करता है।

आज के दौर में रक्षाबंधन का स्वरूप और भी व्यापक हो गया है। अब बहनें भी भाइयों को रक्षा-सूत्र बांधती हैं और कई जगहों पर बहनें एक-दूसरे को भी राखी बांधती हैं। यह दर्शाता है कि रक्षा और प्यार का बंधन लिंग, उम्र या दूरी का मोहताज नहीं होता।
भाई-बहन का बंधन: तकरार से तकरार तक
भाई-बहन का रिश्ता सबसे प्यारा और अनोखा होता है।
जहाँ एक तरफ़ बचपन की शरारतें, झगड़े और छींटाकशी होती है, वहीं दूसरी तरफ़ बेशुमार प्यार और अपनापन भी होता है। रक्षाबंधन इसी रिश्ते को और मजबूत करने का एक ख़ूबसूरत मौका होता है।
आधुनिक रक्षाबंधन: बदलती सोच, नया नज़रिया
आज के समय में रक्षाबंधन सिर्फ भाइयों तक सीमित नहीं रह गया है। यह हर उस रिश्ते का उत्सव बन चुका है जहाँ कोई किसी की हिफाज़त करता है।

कई महिलाएं सैनिकों को राखी भेजती हैं, कुछ राखी पेड़-पौधों को बाँधकर प्रकृति की रक्षा का संदेश देती हैं।
इसका अर्थ है – “जहाँ प्रेम और रक्षा हो, वहाँ रक्षाबंधन है।”
निष्कर्ष:
रक्षाबंधन केवल एक दिन नहीं, बल्कि एक एहसास है जो हमें यह बताता है कि हम किसी के लिए ख़ास हैं और हमारे लिए कोई हमेशा खड़ा है।
इस बार रक्षाबंधन पर सिर्फ धागा न बाँधें, भावनाओं की डोर से रिश्ते को और मजबूत करें।
रक्षाबंधन का अर्थ और महत्व
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“रक्षा” का अर्थ है सुरक्षा, और “बंधन” का मतलब है बंधन या संबंध।
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यह पर्व बहन द्वारा भाई की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना में राखी बांधने की परंपरा पर आधारित है।
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भाई, बदले में बहन को सुरक्षा, सहयोग और प्रेम का वचन देता है।
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यह दिन पवित्र प्रेम और विश्वास की डोर को मजबूत करता है।

रक्षाबंधन का पौराणिक इतिहास
1.
श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा
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महाभारत में, श्रीकृष्ण के हाथ से खून निकलने पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर बाँधा था।
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श्रीकृष्ण ने वचन दिया कि वे द्रौपदी की रक्षा करेंगे – और चीरहरण में वही हुआ।
2.
राजा बलि और माँ लक्ष्मी
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भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी कथा में, जब राजा बलि को विष्णु ने पाताल में भेजा, माँ लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया।
3.
रानी कर्णावती और हुमायूं
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मध्यकालीन भारत में चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूं को राखी भेजी थी ताकि वह उसकी रक्षा करे।

रक्षाबंधन की परंपराएं
- राखी बांधने की रस्म: सुबह स्नान करके पूजा की थाली सजाई जाती है जिसमें राखी, मिठाई, दीपक और अक्षत होते हैं।
- टीका और आरती: बहनें भाई को तिलक करती हैं और आरती उतारती हैं।
- राखी बांधना: रक्षा-सूत्र बांधने के बाद भाई बहन को उपहार देता है।
- मिठाई और पकवान: इस दिन विशेष मिठाइयां और घर के बने पकवानों का स्वाद लिया जाता है।
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घर की सफाई, पूजा की थाली सजाना (राखी, चावल, रोली, दीया, मिठाई)।
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बहन भाई को तिलक लगाती है, आरती उतारती है, फिर राखी बाँधती है।

राखी बांधने के बाद
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भाई बहन को उपहार देता है (पैसे, मिठाई, वस्त्र, गिफ्ट आदि)।
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परिवार एक साथ भोजन करता है।
रक्षासूत्र का मंत्र
(राखी बांधते समय पढ़ने वाला श्लोक):
“ॐ येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥”
(भावार्थ: जिस रक्षासूत्र से महान पराक्रमी राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ — यह रक्षा सूत्र स्थिर रहे, अटल रहे।

रक्षाबंधन 2025 की तारीख
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यह पर्व शनिवार, 9 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा |
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सावन पूर्णिमा तिथि 8 अगस्त दोपहर 2:12 बजे से शुरू होकर 9 अगस्त दोपहर 1:24 तक रहती है |
शुभ मुहूर्त (उचित समय)
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राखी बांधने का शुभ समय: सुबह ५:४७ बजे से दोपहर १:२४ तक (लगभग 7 घंटे 37 मिनट) |
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इस दिन भद्रा (अशुभ काल) का प्रभाव समाप्त हो चुका होगा, इसलिए इस अवधि में बांधना विशेष रूप से शुभ माना जाता है |

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अगर आप और ज़्यादा सौभाग्यशाली मुहूर्त चाहते हैं, तो पूजनीय समय जैसे:
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ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:22 – 5:04 बजे,
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अभिजीत मुहूर्त: 12:17 – 12:53 PM भी अनाबश्यक विधियों में शामिल किए जा सकते हैं |
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पारंपरिक नियम एवं रीति‑रिवाज़
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पूर्व दिशा (brother को पूर्व दिशा की ओर बिठाना) को शुभ माना जाता है |
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राखी बांधते समय पारंपरिक शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक एक मंत्र पढ़ना चाहिए; साथ ही मौली (लाल‑पीले धागों की राक्षासूत्र) का प्रयोग अधिक मंगलकारी माना जाता है |
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भद्र समय (जो अशुभ होता है) से बचना ज़रूरी है; इसलिए मुहूर्त के बाद ही रस्मी आयोजन शुरू करें |

तारीख - शनिवार, 9 अगस्त 2025
पूर्णिमा अवधि - 8 अगस्त दोपहर 2:12 → 9 अगस्त दोपहर 1:24
शुभ मुहूर्त - सुबह 5:47 → दोपहर 1:24
विशेष मुहूर्त - ब्रह्म मुहूर्त (4:22–5:04 AM), अभिजीत (12:17–12:53 PM)
भद्रा समय, जिससे मुहूर्त पहले ही समाप्त हो चुका
अन्य विधि - पूर्व दिशा में बिठाना, मंत्र पाठ, मौली का प्रयोग, पारंपरिक विधियों का पालन अधिक मंगलकारी माना जाता है |