अहोई अष्टमी की  व्रत कब है ?

अहोई अष्टमी व्रत को  कार्तिक माह के हर व्रत और त्यौहार में सर्वोत्तम व्रत माना गया है |  कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत ,दीपावली के सात दिन पूर्व रखा जाता हैं |  जैसे कार्तिक मास के व्रत करवाचौथ का बहुत महत्व है वैसे ही  अहोई अष्टमी व्रत का भी बहुत महत्व है ,यह व्रत  करवा चौथ के चार दिन बाद किया जाता है  |ऐसी मान्यता है की अहोई अष्टमी व्रत करने से पारिवारिक सुख की  प्राप्ति होती हैं | जिस  स्त्री के संतान होते हैं यह व्रत वही रख सकती हैं , ऐसी मान्यता है की इस व्रत के करने से  व्रती स्त्री के संतान को हर प्रकार के सुख सुबिधा और सद्बुध्दि की प्राप्ति होती है ,उसे जीवन में ज्यादा कठिनाइओं का सामना नहीं करना पड़ता है |  अहोई अष्टमी व्रत इस वर्ष 2022  में 17 अक्टूबर (सोमवार ),  को मनाया जायेगा | 

अहोई अष्टमी की  पूजा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार से है :

पूजा करने का सर्वोत्तम  समय 05 :43 शाम से आरम्भ  होकर 07 :01तक माना गया है | 

अष्टमी तिथि की शुरुआत16 अक्टूबर 06:14 शाम से ही हो जाएगी 

17 अक्टूबर को  04:55 शाम को अष्टमी तिथि  का समापन होगा | 

अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय 11:11 रात में होगा | वैसे इस व्रत को तारे  देखकर खोलने की परम्परा है | 

अहोई अष्टमी व्रत की कथा :

पुराने ज़माने में  एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे थे और एक बेटी थी । सातों बेटों की शादी हो चुकी थी। एक बार दीपावली के कुछ दिन पहले उसकी बेटी अपनी भाभियों के संग घर की साफ -सफाई और लिपाई पोताई  करने के लिए जंगल से मिट्टी लाने के लिए गई। जंगल से मिट्टी खोदते वक्त गलती से खुरपी स्याहू के बच्चे पर लग गई जिससे उसकी मौत हो गई। इस घटना को देखकर स्याहू की माता बहुत दुखी हुई और उसने साहूकार की बेटी को कभी भी मां न बनने का श्राप दे दिया। इस श्राप के प्रभाव से साहूकार की बेटी के घर किसी को भी संतान का जन्म नहीं हुआ। इस वजह से साहूकार की बेटी बहुत दुखी रहने लगी। एक बार उसने अपनी भाभियों से कहा कि आप में से कोई एक भाभी अपनी कोख बांध लें। अपनी ननद की यह बात सुनकर सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई। श्राप के प्रभाव के कारण जब भी वह कोई बच्चे को जन्म देती वह 7 दिन बाद मर जाता था। यह देखकर साहूकार की बेटी अपनी इस समस्या को लेकर एक पंडित से के पास गई। पंडित ने साहूकार की बेटी की सारी व्यथा सुनी और उन्होंने सुरही गाय की सेवा करने को कहा। 

यह बात सुनकर साहूकार की बेटी ने सुरही गाय की सेवा करनी आरम्भ  कर दिया ।उसकी अथक सेवा को देखकर गाय बहुत प्रसन्न हुई और एक दिन साहूकार की बेटी को स्याहू के माता के पास ले गई। रास्ते में जाते वक्त उसे गरुड़ पक्षी के बच्चे दिखे जिसे सांप मारने वाला था। जैसे ही सांप बच्चे को मारने की कोशिश की साहूकार की बेटी ने सांप को मारकर गरुड़ पक्षी के बच्चे के प्राण बचा लिया। उसी समय गरुड़ पक्षी की मां वहां आई और वह देखकर बहुत प्रसन्न हुई। तब वह उसे स्याहू की माता के पास ले गई। स्याहू की माता उसके उपकार को सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और उसने उसे सात संतान की माता होने का आशीर्वाद दिया। उनके आशीर्वाद से उसके कोख से 7 पुत्र ने जन्म लिया। इस तरह से उसका परिवार भरापूरा हो गया और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगी। इसलिए यह कहा जाता है की अहोई अष्टमी को माता अहोई की कथा सभी को जरूर सुनना चाहिए ।

अहोई अष्टमी व्रत के  महत्व :

संतान की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए उनकी माताएं निर्जला व्रत रखती हैं | साथ ही देवी पार्वती की आराधना कर संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से माता  पार्वती व्रती स्त्रियों की संतान की रक्षा गणपति और कार्तिकेय के समान ही करती हैं।माता अहोई देवी पार्वती का स्वरूप मानी गई हैं। कई जगहों पर यह भी मान्यता है की जिन स्त्री के संतान नहीं है वह भी संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत कर सकती हैं | अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने वाली स्त्रियों को सूर्योदय से पूर्व स्नान कर देवी का स्मरण कर व्रत का संकल्प लेना होता है । इसके बाद अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता और उनके सात पुत्रों का चित्र बनाया जाता है। शाम के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रख कर  माता को रोली व चावल अर्पित कर उनका सोलह श्रृंगार करवाया जाता है । इसके बाद मीठे पुए या आटे का हल्वे का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा है । कलश पर स्वास्तिक बना कर हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनी जाती है । इस दिन गाय की पूजा की जाती है | अहोई अष्‍टमी की व्रत कथा सुनते वक्‍त अपने हाथ में सात तरह के अनाज रखें। पूजा करने के बाद यह अनाज गाय को खिला दें। 

ऐसी मान्यता है की जो स्त्री अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं वे  व्रत के दिन  मिट्टी से जुड़ा कोई काम नहीं करें , इसके अलावा भूलकर भी खुरपी का इस्तेमाल नहीं करें। अहोई अष्टमी के दिन ऐसा करना अशुभ होता है।