हिन्दू पंचांग के मुताबिक आश्विनमास की शरद पूर्णिमा के दूसरे दिन से ही कार्तिक महीने का आरम्भ हो जाता है | २०२२ में यह मास १० अक्टूबर से आरंभ हो रहा है और देवदीवाली अर्थात कार्तिक मास की पूर्णिमासी ८ नवंबर तक रहेगा  |  इस महीने कई व्रत और त्यौहार मनाये जाते हैं ,किन्तु खाश तौर पर महिलाओं द्वारा अपने पति की लम्बी आयु की कामना से किया गया करवा चौथ की व्रत के प्रति महिलाओं में व‍िशेष  उत्‍साह पाया जाता है | सुहागन महिलायें भली भांति तैयार होकर यह व्रत और पूजा करती हैं |आज कल यह व्रत कुवारी लड़कियाँ  द्वारा भी  अच्छे पति की प्राप्ति के लिए रखा जाने लगा है |  कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत सुहागन स्त्री द्वारा  किया जाता है ।इस साल 2022 में  करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर को गुरुवार के  दिन है |  इस दिन पूजन का शुभ मुहूर्त  17:48 से 19:05 तक कुल 1 घंटा 17 मिनिट तक का है |  साथ ही करवा चौथ की शाम को चांद के पूजन का भी व‍िशेष महत्‍व है। चंद्र उदय के बाद महिलाएं चाँद को अर्घ्य देने के बाद ही पानी पीती हैं | इसलिए व्रती महिलाएं चन्द्रोदय का बेसब्री से इंतजार करती हैं | इस दिन चंद्र देव भी हर दिन के तुलना में थोड़े विलंब से दर्शन देते हैं |  हर शहर में चाँद निकलने का समय अलग अलग हो सकता है ,अगर आप या कोई आपके जानने वालों में से यह व्रत रख रहे हैं तो उनकी सुबिधा के लिए यहाँ चंद्रोदय का समय बताया गया है। 

करवा चौथ के दिन चांद निकलने का समय :

कोलकाता- रात 7:40 बजे

पटना- रात 07:47 बजे

प्रयागराज - रात 08:02 बजे

देहरादून- रात 08:05 बजे

शिमला- रात 8:06 बजे

श्रीनगर- रात 08:08 बजे

चंड़ीगढ़- रात 8:09 बजे

दिल्ली- रात 8:12 बजे

अमृतसर- रात 08:15 बजे

चेन्नई- रात 8:33 बजे

अहमदाबाद- रात 08:45 बजे

मुंबई- रात 8:52 बजे

करवा चौथ व्रत की  कथा :

करवा चौथ में स्त्रियों द्वारा कथा सुनने का बहुत महत्व है ,व्रत रखने वाली सभी स्त्रियाँ एक जगह इकठ्ठा होकर अपने -अपने सजाये हुए थालों को फेरती हैं उस के बाद कथा सुनती हैं | करवा चौथ की कथा इस प्रकार है - एक नगर में बहुत धनी  साहूकार रहता था |  उसके सात लड़के थे और एक ही  लड़की थी | सातो भाई अपनी बहन को बहुत ही स्नेह करते थे ,यहाँ तक की बहन के साथ ही खाना भी कहते थे | कार्तिक महीने मे जब कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आई, तो साहूकार के परिवार की महिलाओ ने भी करवा चौथ का  व्रत रखा |  जब रात्री के समय साहूकार के बेटे भोजन ग्रहण करने बैठे, तो उन्होने साहूकार की बेटी (अपनी बहन) को भी साथ मे भोजन करने के लिए कहा |  व्रत करने के कारण  बहन ने खाने से मना कर दिया |  उसने कहा कि मै चाँद के निकलने पर पूजा विधि सम्पन्न करके ही भोजन करूंगी | भाइयो के द्वारा बहन का  भूख के कारण मुर्झाया हुआ चेहरा देखा नहीं गया |  उन्होने अपनी बहन को भोजन कराने के लिए प्रयत्न किया | उन्होने घर के बाहर जाकर अग्नि जला दी | अग्नि के प्रकाश को दिखाकर अपनी बहन को बोला  कि चाँद निकाल आया है , अब   तुम चाँद को अर्ध्य दो और अपना पूजा कर के भोजन ग्रहण कर लो | यह सुनकर बहन अपनी भाभियो से भी पूजा करके व्रत खोलने का आग्रह करने लगी ,परन्तु भाभियों को भाई द्वारा गयी युक्ति का पता था , उन्होने अपनी नन्द को भी इस बारे मे बताया और कहा की आप भी इनकी बात पर विश्वास ना करे | परंतु बहन ने भाभीयों की बात पर ध्यान ना देते हुये पूजन संपन्न कर खाना खा लिया , इस प्रकार उसका व्रत टूट गया और गणेश जी उससे नाराज हो गए | उसी दिन उसका पति बहुत ही बीमार हो गया पति की बीमारी में उसके सारे रूपये -पैसे ख़तम हो गए ,जब साहूकार की कन्या को यह पता चला की करवाचौथ का व्रत उसने बीच  में ही छोड़ दिया था तो उसे बहुत ही पछतावा हुआ और अगले साल के करवाचौथ का व्रत पूरे विधि विधान से संपन्न करके व्रत का पूजन किया तथा गणेश जी की आराधना की ,और अपनी त्रुटि के लिए माफ़ी माँगा | उसकी श्रद्धा और भक्ति के साथ किये गए व्रत को देखते हुये भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए |  उसके पति को जीवन दान दिया और  उसके परिवार को धन तथा संपत्ति भी प्रदान की |  इस प्रकार जो भी श्रध्दा भक्ति से इस करवा चौथ के व्रत को करता है, वो सारे सांसारिक क्लेशो से मुक्त होकर प्रसन्नता पूर्वक अपना जीवन यापन करता है  | 

करवा चौथ व्रत की पूजन विधि :

करवा चौथ व्रत  में  दिन में न कुछ खाया जाता ना ही पानी पीया जाता यानि यह व्रत निर्जला रखा जाता है | सूर्योदय से व्रत शुरू होता है और चंद्र दर्शन के बाद ही  व्रत को खोला जाता है|ऐसी मान्यता है की पहली बार करवा चौथ के व्रत में  अगर स्त्री की सास या जिठानी व्रत के समय फल, जल और अन्य चीजे ग्रहण करवा देती है तो वह स्त्री बाद में  भी अपने सुविधा अनुसार इन चीजों को ग्रहण कर सकती हैं ,अन्यथा उन्हें  निर्जला रहकर ही यह व्रत करना पड़ता है |  करवा चौथ व्रत  की पूजा  करते वक़्त एक पटरे  पर जल से भरा कलश  एवं एक मिट्टी के  करवे मे गेहु भरकर रखा जाता है |  इस दिन पूजन के लिए दीवार पर या कागज पर चंद्रमा तथा उसके नीचे भगवान शिव और कार्तिकेय की प्रतिमा बनाई जाती है और इसी प्रतिमा की पूजा व्रती  स्त्रियो द्वारा की जाती है | करवा चौथ व्रत के दिन  महिलाये अपने घर मे पूड़ी तथा भी हलवा बनाती  है | अब इन पुड़ियो के साथ हलवा और कोई मिठाई का भोग लगा कर  इसके साथ ही  साडी ब्लाउस और अपनी इच्छा अनुसार रुपये  रखकर तथा उसके आसपास कुमकुम चावल लगाते है |  अब इसे अपनी सासु माँ के चरण स्पर्श कराकर अपने सास या ननद को दे  देते है |दिन भर की कठोर तपस्या के बाद जब रात्री मे चंद्रमा के दर्शन होते हैं , तब चंद्रमा की पूजा के बाद यह व्रत पूर्ण होता है| इस दिन महिलाएं अन्न और जल तब तक ग्रहण नहीं करती  जब तक की चंद्रमा को अर्घ्य न दे ,चंद्र का दर्शन करना  महत्वपूर्ण है | हर वो स्त्री जो व्रत करती है वो चंद्रमा को अर्घ्य जरूर देती है और फिर व्रत पूर्ण होता है | चंद्रमा को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में माना जाता है क‍ि चांद को देखकर पूजा करने से पति और पत्‍नी में प्रेम बढ़ता है। चांद को अर्घ्‍य देने के बाद छलनी से पत‍ि का चेहरा देखकर व्रत खोलने की शुरुआत होती है। पहले पति को कुछ मीठा ख‍िलाकर और पानी देकर उनका आशीर्वाद लेने की परम्परा है और उनके हाथ से कुछ मीठा खाकर पानी का घूंट पीएं।अब अपने व्रत को पूर्ण कर सभी स्त्रियां  रात्री मे जल तथा भोजन ग्रहण करती है| 

करवाचौथ के पूजा में  पहने जाने वाला गहना :

वैसे तो इस दिन महिलाये सोलह शृंगार करती हैं ,चूड़ी ,बिंदी ,मेहँदी की मनभावन डिज़ाइन बनवाती हैं| करवाचौथ व्रत के एक दिन पहले से ही बाजार में महिलाओं द्वारा तरह तरह की खरीददारी की जाती है | ऐसा माना जाता है की व्रत करने वाली महिलाओं को मंगलसूत्र और नथ जरूर धारण करना चाहिए | पैरों को सजाने के लिए पायल बिछुआ और  आलता लगाया जाना बहुत ही शुभ  माना जाता है | लाल रंग के कपड़ों को ज्यादा अच्छा माना जाता है ,उस दिन स्त्रियां काला रंग नहीं पहनती है |