गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है|पूर्व मान्यता के अनुसार  गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, सोमवार, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था | इसलिए यह चतुर्थी मुख्य गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी कहलाती है | 10 दिन तक चलने  वाला गणेश उत्सव उदया तिथि के आधार पर 31 अगस्त को गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा| गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी हमारे देश में हर जगह बहुत धूमधाम से मनाया जाता है | इस वर्ष की खास योग में  पूजा करने का एक खास समय बताया गया है 31 अगस्त को सुबह 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट के बीच गणेश भगवान  की पूजा का शुभ मुहूर्त है| इस दिन रवि योग सुबह 05 बजकर 58 मिनट से दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक रहेगा| इस अवधि में आप कोई भी  शुभ कार्यों का आरम्भ कर सकते है यह समय  अति उत्तम माना जाता है|गणपति पूजा कई जगहों पर 10 दिनों तक की जाती है यह एक बहुत ही खास त्यौहार के रूप में मनाया जाता है  जो अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है। गणेश विसर्जन  त्यौहार के आखिरी दिन किया जाता है साल २०२२ में ९ सितम्बर को विसर्जन किया जाना चाहिए। वैसे तो गणपति भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है किन्तु कुछ खास प्रकार की विधि द्वारा उनको और आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। नीचे  कुछ खास मुहूर्त के बारे में  बताया गया है :

 

गणेश स्थापना मुहूर्त - सुबह 11.05 - दोपहर 1.38 (31 अगस्त 2022)

विजय मुहूर्त - दोपहर 2.34 - 3.25 (31 अगस्त 2022)

अमृत काल मुहूर्त - शाम 5.42 - 7.20 (31 अगस्त 2022)

गोधूलि मुहूर्त - शाम 6.36 - 7.00 (31 अगस्त 2022)

रवि योग - 31 अगस्त 2022, सुबह 06.06 - 1 सितंबर 2022, सुबह 12.12

गणेश विसर्जन  - 9 सितंबर 2022 (अनंत चतुर्थी)


व्रत व पूजन विधि

जो भी महिला या पुरुष व्रत रख रही हो उनको सुबह जल्दी उठ कर नहाकर भगवन गणेश जी की सोने, तांबे, मिट्टी की  प्रतिमा लेकर,एक कलश के ऊपर साफ कपड़ा से बांधकर गणेश जी को रख कर पूजा आरम्भ करना चाहिए | गणपति जी को दूर्वा बहुत पसंद है इसलिए उनके पूजन में  दूर्वा की एक खाश महत्व है ,२१ दूर्वा पर लाल चन्दन लगा कर गणपति को अर्पण करने से वयक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती है | दूर्वा अर्पण करने के बाद भोग लगाना चाहिए ,गणेश जी को वैसे तो मोदक बहुत प्रिय है ,उन्हें मोदक के साथ साथ लड्डू और गुड़ के साथ घी का भी भोग अति पसंद है | शाम के समय सपरिवार पूजन करें साथ ही गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा व आरती पढ़ने के बाद अपनी दृष्टि को नीचे रखते हुए चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए|इस के बाद सवा किलो लड्डू गरीबो में  बाँट दें | 

 मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए | इससे श्राप मिलता है| इसके पीछे की यह मान्यता है की  यह  - गणेश जी के गज मुख और भारी पेट को देखकर चन्द्रमा ने उनका उपहास किया जिससे गणपति नाराज होकर  चंद्रमा को शाप दे दिए कि तुम्हें अपने जिस  रूप पर बहुत घमंड है वही   क्षय हो जाएगा और तुम्हें कोई नहीं देखेगा। जो कोई तुम्हे देखेगा उसे कलंक लगेगा| इस घटना से दुखी होकर चंद्र देव दिन प्रतिदिन घटने लगे साथ ही  शिव जी की उपासना करने के लिए गुजरात के सोमनाथ में  बालू के शिवलिंग को स्थापित कर के श्राप  मुक्ति का उपाय पूछे ,उनके उपासना से प्रसन्न होकर शिवजी चन्द्रमाँ को अपने मस्तक पर धारण कर लिया | और उनसे गणपति जी की आराधना करने की सलाह दी | जिसके फलस्वरूप गणेश जी चंद्रमा को माफ़ तो कर दिए किन्तु वह पूर्णरूप  से श्राप से मुक्त नहीं हो पाए अतः चन्द्रमा हमेशा घटते और बढ़ते रहता है। साथ ही उन्होंने यह कहा की ,अगर कोई चंद्र दर्शन करना चाहते हैं तो मनुष्य  को कुछ खास  तरह का एहतियात बरतना चाहिए | मनुष्य  या तो भादों  मास में प्रतिदिन चन्द्र का दर्शन  करें या फिर इस शाप से बचने का एक उपाय यह भी है कि इस दिन स्यमंतक मणि की कथा का पाठ करना चाहिए और हाथों में दही या फल लेकर चंद्रमा का दर्शन करना चाहिए।विष्णु पुराण के मुताबिक  भी ऐसा माना  जाता है की भादों  मास में कलंक चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण को भी मिथ्या कलंक लगा था।इन कारणों से ही गणेश चतुर्थी का नाम कलंक चतुर्थी भी है | 

साथ ही मिथिला में चौठ चंद्र के नाम से भी यह दिन प्रसिध्द है |  चौठ चंद्र व्रत में महिलाएं सुबह से निर्जला व्रत रखकर कई प्रकार के व्यंजन बना कर चन्द्रमा का पुजन करके व्रत खोलती हैं | व्रती के साथ घर के हर सदस्य हाथों में फल, दही और पकवान लेकर चंद्रमा के दर्शन करते हैं।मिथिला का परम्परा है की  खीर को एक थाली में रखा जाता है फिर खीर को चांदी की अंगूठी या सिक्के से काटते हैं। इसको ही मिथिला वासी चौठ चंद्र का मुख्य प्रसाद मानते हैं | उनका यह मानना है की इस से कभी झूठा कलंक नहीं लगता और साथ ही परिवार के सदस्यो के मान  प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है और वे निरोगी होते हैं |

श्री गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।

माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।

बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।

कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥