चमत्कारी तांडव स्त्रोत के पाठ के  क्या हैं फायदे ?

 

सावन का पवित्र महीना भोले भंडारी को अतिप्रिय है| भगवान शिव के भक्त तरह तरह से पूजा अर्चना के माध्यम से अपने आराध्य को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं| भक्तों द्वारा किए गए पूजा और पाठ का फल शिव शंकर यथाशीघ्र प्रदान करते हैं| अगर भक्तों की कोई मनोकामना है तो सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करके उनसे मनचाहा वरदान पाया जा सकता है| वैसे तो भोले शंकर का नाम ही भोला औघड़ दानी है ,अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न होकर उसे हर तरह की परेशानी से मुक्त करते हैं इसके बावजूद  सावन का पवित्र महीना भगवान भोलेनाथ की पूजा के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है|  इस पवित्र महीने में शिव की साधना जिस भी रूप में की जाए विशेष फलदायी होती है| भगवान शिव को प्रिय शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से महादेव प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं|  शिव तांडव स्त्रोत को रावण स्त्रोत भी कहा जाता है| चूँकि रावण भी शिव भक्त था और वो काफी ज्ञानी था भगवान भोले को प्रसन्न करने के लिए उसने विशेष स्तुति की रचना कर दी  थी, जिसे शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना जाता है| शिव तांडव स्त्रोत में वो शक्ति है, जो महादेव को कृपा बरसाने पर मजबूर कर देती है|

 

चमत्कारी तांडव स्त्रोत के पाठ के  क्या हैं फायदे ?

 

 

क्या है शिव तांडव स्तोत्र? शिव तांडव स्त्रोत का महत्व -

 

शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव के परम भक्त रावण द्वारा की गई एक विशेष प्रकार स्तुति है|  यह स्तुति छन्दात्मक है और इसमें बहुत सारे अलंकार हैं| शिव महापुराण की एक कथा में यह बताया गया है कि लंकापित रावण को अपने  शक्ति बल का बहुत घमंड था वह अपने शक्ति दिखाने के लिए कैलाश पर्वत को अपने हाथों पर उठाकर लंका ले जाने लगा था तभी उसका अहंकार को मिटाने के लिए भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे मात्र से कैलाश को दबाकर एक जगह पर  स्थिर कर दिए थे , इसी दौरान रावण का हाथ उस पर्वत के नीचे दब गया और वह दर्द से कराह उठा - 'शंकर शंकर' जिसका मतलब था क्षमा कीजिए, क्षमा कीजिए साथ ही वह महादेव की स्तुति करना आरम्भ कर दिया,उसके इस स्तुति से प्रसन्न होकर महादेव ने रावण के दबे हाथों को मुक्त कर दिया, जिससे रावण  की पीड़ा दूर हो गई । उसे शिव तांडव स्तोत्र कहा गया| जिस जगह रावण दबा था, उसे राक्षस ताल कहा जाने लगा| हमारे हिंदू धर्म में यह कहा गया है कि तांडव भगवान महादेव की एक नृत्य करने की मुद्रा है, जिसमेंउनका  क्रोध नजर आता है|

 

 

रावण ने रचा था शिव तांडव स्तोत्र, सावन के सोमवार इसका पाठ करने से होगा लाभ |

 

 

 सनातन धर्म में शिव तांडव का खास महत्व है|  शास्त्रों में यह वर्णित है कि शिव तांडव में सिर्फ क्रोध ही नहीं बल्कि कई लीलाएं भी मौजूद हैं|  शिव जब तांडव करते हुए अपना तीसरी आंख खोल देते हैं तो धरती पर प्रलय आ जाती है| जब भोलेनाथ डमरू बजाकर तांडव करते हैं तो वह परम आनंद की मुद्रा में होते हैं| आनंदमय तांडव के समय भगवान शिव नटराज कहे जाते हैं|

 

कैसे करें शिव तांडव स्त्रोत का पाठ ?

 

 

|  कैसे करें शिव तांडव स्त्रोत का पाठ ?

 

 

सनातन धर्म में यह धारणा है कि कोई भी व्रत या पूजा पाठ भक्ति भाव से करने पर ज्यादा फलदायी होता है| सूर्योदय के समय किया गया पाठ ज्यादा अच्छा माना जाता है| महादेव को प्रसन्न करने वाला शिव तांडव स्त्रोत का पाठ भी सूर्योदय के वक्त करना काफी फलदायी माना गया है| कोई भी पूजा  पाठ करने से पहले स्नान आदि करके साफ कपड़े पहनने चाहिए|  भगवान शिव की प्रतिमा को प्रणाम कर उनके सामने धूप और दीप प्रज्वलित करना चहिए | आप शिव जी को प्रसन्न करने के लिए स्तुति से पहले शिव को उनका प्रिय बेलपत्र, भांग, धतूरा जरूर अर्पण करें| जलाभिषेक के बाद सही शब्दों के साथ शिव तांडव स्त्रोत का पाठ शुरू करना चाहिए|  इस पाठ को करने से महादेव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं|  कहा जाता हैं कि जो भी मनुष्य इस स्तोत्र का श्रावण मास में प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक पाठ करता हैं भोले बाबा उसकी सभी पीड़ायें हर लेते हैं।इतना ही नहीं अगर आप स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं जिसका कोई समाधान नहीं  मिल पा रहा है या तंत्र-मंत्र बाधा से भी परेशान हैं तो इसका पाठ अवश्य करें| 

 

 कैसे करें शिव तांडव स्त्रोत का पाठ ?

 

 

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

अर्थ - उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है,

और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है,

और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,

भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।

 

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥

अर्थ - मेरी शिव में गहरी रुचि है,

जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है,

जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं?

जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,

और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।

 

 

करें शिव तांडव स्त्रोत का पाठ ?

 

 

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

अर्थ - मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे,

अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं,

जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं,

जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,

और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।

 

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

अर्थ - मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,

उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,

ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,

जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।

 

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥ 

अर्थ - भगवान शिव हमें संपन्नता दें,

जिनका मुकुट चंद्रमा है,

जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,

जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,

जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।

 

जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।

 

 

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

अर्थ -शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,

जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,

जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।

 

रालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

अर्थ -मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,

जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,

उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है,

वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,

सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।

 

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

अर्थ -भगवान शिव हमें संपन्नता दें,

वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,

जिनकी शोभा चंद्रमा है,

जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।

 

जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,

 

 

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

 

अर्थ - मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,

पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,

जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।

जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,

जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,

जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,

और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

अर्थ - मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं

शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,

जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,

जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,

जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,

और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया,

 

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

अर्थ - शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड

तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,

जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,

गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।

 

 

गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।

 

 

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

अर्थ - मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,

जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,

घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,

सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,

सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?

 

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

अर्थ - मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,

अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,

अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,

महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?

 

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

अर्थ - देवांगनाओं के सिर में गूंथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएं परमानंद युक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें ।

 

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना । विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५ ॥

 

 

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५ ॥

अर्थ - प्रचण्ड बड़वानल की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएं ।

 

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

अर्थ - इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,

वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।

इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।

बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।

 

बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।

 

पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७ ॥

अर्थ - प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिव ताण्डव स्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोड़ा आदि संपदा से सर्वदा युक्त रहता है।