होली को  रंगों का त्योहार या प्यार का त्यौहार भी कहा जाता है। 

 

होली का त्यौहार हमारे भारतवर्ष में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है इस त्यौहार की तिथि हिंदू कैलेंडर के अनुसार ही तय की जाती है ।

भारतीय चंद्र कैलेंडर के अनुसार होली मनाई जाती है।जैसे की हिन्दू पंचांग के मुताबिक पुर्णीमा की तिथि हर साल बदलती रहती है। यह आमतौर पर तो मार्च में ही आती है किन्तु कभी-कभी फरवरी में भी आ जाती है।

यह न केवल धार्मिक उत्सव के लिए ही महत्वपूर्ण है बल्कि होली बसंत के आने की खुशी को भी जाहिर करती है। यह फागुन के मास के अंतिम पूर्ण चांद के दिन आती है। यह हिंदू कैलेंडर के अंतिम महीने में खुशनुमा मौसम के साथ  सर्दी के जाने को भी दर्शाती है।

 

होलिका दहन की तारीख और शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखें :

 

इस रंगीन त्यौहार के माध्यम से हम बुराई पर अच्छाई के विजय को भी दर्शाते हैं | होली का त्यौहार आमतौर पर 2 दिन तक मनाई जाती है। पहले दिन को छोटी होली कहा जाता है या होलिका दहन( होलिका की मृत्यु) । ये तब होती है जब होलिका दहन की धार्मिक रस्म पूरी की जाती है। वैसे होलिका की चिता बनाने का काम जिसमें होलिका का दहन किया जाता है हफ्तों पहले से ही शुरू हो जाता है।इसके लिए सही समय का महत्व होता है |ज्योतिष शास्त्र में भद्रा काल को अशुभ समय बताया इसलिए होलिका दहन के समय भद्रा काल नहीं लगना चाहिए। दरअसल, यह माना  जाता है कि भद्रा काल में होलिका दहन करने से सुख समृद्धि में कमी आती है। इसके अलावा पूर्णिमा प्रदोष काल में होलिका दहन करना सबसे उत्तम माना जाता है। अगर प्रदोष काल में भद्र मुख लग जाए तो भद्रा मुख समाप्त होने के बाद होलिका दहन किया जाता है।

 इस साल 2023 में होलिका दहन की अवधि : 2 घंटा 26 मिनट है ,

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त : 7 मार्च को 06 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगा | 

होलिका दहन

 

होलिका दहन का महत्व और कथा : 

 

धर्म शास्त्रों में यह बताया गया है कि किस प्रकार से भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते आये हैं , जब हिरण्यकश्यप (राक्षसों के राजा) ने देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करता है वह भगवान का भक्त था , जो हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थे ,प्रह्लाद की भक्ति से परेशान हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हो गया। और अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। क्यूंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे आग में नहीं जलाया जा सकता। लेकिन, होलिका आग में जलकर राख हो गई और विष्णु जी के भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। तभी से होलिका दहन किया जाता है। होली का त्योहार यह संदेश देता है कि इसी तरह भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए उपलब्ध रहते हैं।

 

होलिका दहन के समय अग्नि में कुछ चीजों को अर्पित करने की प्रथा है:

 

  • गोबर के कंडे : 

होलिका दहन के दिन 5-5 कंडे को एक-एक जोड़कर पांच जोड़ा बना लें और  शाम को विधिवत पूजा के बाद होलिका दहन के समय अग्नि में अर्पित कर दें| 

  • बताशा : 

मां लक्ष्मी को बताशा बेहद प्रिय है इसलिए होलिका दहन के समय अग्नि में बताशा अर्पित करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं| और घर में हमेशा के लिए वास करती हैं| 

  • गन्ना : 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलिका दहन की अग्नि में गन्ना अग्नि में अर्पित करना या सेंकना अच्छा माना गया है | 

गेहूं की बाली :

अन्न के रूप में होलिका में नए उगाये गए गेंहू की बाली अर्पित किया जाता है|  गन्ने के साथ 5 गेंहू की बाली को बांध कर अर्पित करने की परंपरा है | यह मान्यता है कि इससे व्यक्ति के घर में अन्नपूर्णा माता की कृपा बनी रहती है | 

  • चावल : 

होलिकादहन में चावल को भी अर्पित किया जाता है कहते हैं कि चावल के रूप में व्यक्ति अपने शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को हटाता है|  और एक नई शुरुआत करता है|  

होलिका दहन

 

इन चीजों को अर्पित करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है|