भारत पर्वों और त्योहारों का देश है. हिन्दुओं में अलग-अलग मतावलंबी हैं जिनमे शैव, वैष्णव एवं शाक्त प्रमुख हैं. शैव से तात्पर्य है जो शिव की उपासना करते हैं और शिव से सम्बंधित कुछ मूल क्रियाकलापों का पालन करते हैं. वैष्णव भगवान विष्णु की उपासना करते हैं और वैष्णव होने के मूल क्रियाकलापों का पालन करते हैं. शाक्त से तात्पर्य है शक्ति की उपासना करने वाले अर्थात माता दुर्गा, माता काली एवं माता के अन्य रूपों की उपासना करनेवाले. वस्तुतः शैव, वैष्णव और शाक्त भारत के सभी भागों में हैं. शक्ति की उपासना मुख्य रूप से उत्तर भारत में होती है और हम कहा सकते हैं की आसाम एवं बंगाल भारत में शक्ति उपासना के केंद्र हैं.

भारत में मुख्य रूप से दो बार दुर्गा पूजा मनाया जाता है. शारदीय नवरात्र एवं बासंती चैत्र नवरात्रि या चैत्र चैत्र नवरात्रि. इस वर्ष चैत्र चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 13 अप्रैल से हो रही है. चैत्र नवरात्र की मुख्य पूजा निम्नलिखित है:

13 अप्रैल  (शुक्रवार) प्रतिपदा- कलश स्थापन, माता शैलपुत्री  

14 अप्रैल  (शनिवार) द्वितीया-माता ब्रह्मचारिणी 

15 अप्रैल  (रविवार) तृतीया - माता चंद्रघंटा 

16 अप्रैल  (सोमवार) चतुर्थी - माता कुष्मांडा 

17 अप्रैल  (मंगलवार) पंचमी - माता स्कन्दमाता 

18 अप्रैल  (बुधवार) षष्ठी - माता कात्यायनी 

19 अप्रैल  (बृहस्पतिवार) - सप्तमी - माता कालरात्रि

20 अप्रैल  (शुक्रवार) अष्टमी - माता महागौरी, महाष्टमी पूजन 

21 अप्रैल  (शनिवार) नवमी - माता सिद्धिदात्री, नवमी व्रत, कन्या पूजन, रामनवमी 

22 अप्रैल  (रविवार) दशमी  - नवरात्री 

कलश स्थापन का शुभ समय: 13 अप्रैल सुबह 5 बजकर 58 मिनट से प्रारंभ होकर 10 बजकर 15 मिनट तक कलश स्थापन का शुभ समय है.

कलश स्थापन के लिए आवश्यक सामग्री:कलश (मिट्टी या ताम्बे का), पवित्र स्थान की मिट्टी, सप्तधान्य (7 प्रकार के अनाज), जौ , पंचरत्न, जल (गंगाजल), कलावा/मौली, सुपारी, आम्र पल्लव, पूर्ण पात्र, अक्षत, पानी सहित नारियल, दक्षिणा, लाल कपड़ा, पुष्प और पुष्पमाला.

संक्षिप्त पाठ विधि: दुर्गा पूजा में दुर्गासप्तशती के पाठ का विधान है. दुर्गा सप्तशती के कुल 13 अध्याय हैं जिसमे 700 श्लोक हैं तथा दुर्गा सप्तशती को तीन चरित्रों में बांटा गया है. प्रथम चरित्र में पहला अध्याय है. अध्याय 2 से अध्याय 4 द्वितीय चरित्र में है, एवं उत्तर चरित्र अध्याय 5 से 13 तक का है. दुर्गासप्तशती का पाठ आप एक-एक रहस्य को एक दिन में पढ़कर नौ दिन में पुरे तीन बार पढ़ सकते हैं. यदि आप चाहें तो एक दिन में पूरे तेरह अध्याय का पाठ कर सकते है इस पाठ को सम्पूर्ण पाठ कहा जाता है. पाठ करने की एक और विधि है जिसमे पाठक सप्तशती के श्लोकों के ऊपर और नीचे  किसी मन्त्र से संपुटित कर पाठ करता है यह पाठ विधि संपुटित पाठ कहलाती है. दुर्गा सप्तशती का पाठ चाहे किसी भी विधि से करें अध्यायों के पहले कील, कवच एवं अर्गला का पाठ करें एवं अध्याओं के अंत पर तीनों रहस्यों का पाठ अवश्य करें. शापोद्धार का पाठ कील, कवच अर्गला के पाठ से पहले कर लें. दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद क्षमा प्रार्थना अवश्य करना चाहिए, पूजा पाठ में हुई त्रुटि के लिए हम माता से क्षमा प्रार्थना करते हैं.