CCTV footage का भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा में महत्वपूर्ण स्थान है। सीसीटीवी फुटेज के द्वारा आरोपी की पहचान होती है इसलिए हम भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने व्यक्ति की पहचान की बुनियादी अवधारणा को बताने की कोशिश करते हैं और इसलिए हम भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 के संदर्भ में  आरोपी की पहचान का महत्व के बारे मे  भी चर्चा कर रहे है। अगर कोई घटना ऐसे जगह पर होती है जहा का  सीसीटीवी फुटेज नही मिल पाता है और यदि आरोपी की पहचान भी नही होती है, तो  टी. आई .पी. का सहारा लिया जाता है इसलिए आवश्यक ये होगा की  हम टी आई पी को समझे ।

 

कभी - कभी अपराध अंधेरे को देखते हुए किया जाता है या अंधेरे की आड़ में ही किया जाता है। जहां आरोपी व्यक्ति की पहचान बताने वाला कोई नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में अपराध को परिस्थितिजन्य साक्ष्य  से ही साबित किया जाता है। ऐसा ही एक साक्ष्य है सीसीटीवी फुटेज।और आज हम चर्चा करते है की क्या अकेले सीसीटीवी फुटेज के आधार पर क्या मामला स्थापित किया जा सकता है या नहीं। साथ ही साथ भ्रम और गलत अवधारणा से बचने के लिए हम भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के  बारे न्यायालय में इलेक्ट्रॉनिक्स साक्ष्य की स्वीकार्यता की प्रक्रिया पर भी चर्चा करते हैं।

 

cctv

 

आरोपी व्यक्ति की पहचान को  स्थापित करने के लिए सबसे अधिक पालन की जाने वाली विधियों में से एक है परीक्षण पहचान परेड या टी आइ पी ।जो की भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 के अनुसार लिया जाता है जब गवाह आरोपी को जानता है और पहचानता है तो टीआरपी की कोई आवश्यकता नहीं होती है, दूसरे शब्दों में जब आरोपी ज्ञात/ नामित होता है तो उनके जब खिलाफ प्राथमिकी  दर्ज की जाती है,तो टीआरपी की प्रक्रिया से गुजरने की कोई आवश्यकता नहीं होती है ।हालांकि जब अपराध अज्ञात व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो टीआरपी का उपयोग गवाह की सटीकता का परीक्षण करने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है ताकि उस अज्ञात व्यक्ति की पहचान की जा सके जिसे गवाह ने  घटना के समय घटना के स्थान पर देखा था।

       

टी.आई.पी आयोजित करने की प्रक्रिया

     

टी.आई. पी बिना  किसी देरी के आयोजित किया जाना चाहिए, क्योंकि टीआआई.पी का मुख्य उद्देश्य गवाह की याददाश्त को  कमजोर पड़ने से पहले आरोपी व्यक्ति की पहचान करना है ।, टी. आई. पी .के संचालन में देरी अभियोजन पक्ष के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। जांच एजेंसियों द्वारा मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में टीआरपी का संचालन किया जाता है। इस पहचान परेड के माध्यम से जांच एजेंसी यह  पता लगाती है कि अपराध का संदिग्ध अपराधी असल अपराधी है या नहीं। अभियुक्त के पहचान के बाद यह प्रसांगिक है कि गवाह न्यायालय के समक्ष भी आरोपी व्यक्ति को पहचान कर लेगा और तभी टी.आई.पी वास्तविक साक्ष्य  बन जाता है। अगर किसी अज्ञात  आरोपी को  बिना टी.आई. पी.के अदालत में पहली बार पहचान को बहुत कमजोर साक्ष्य माना जाता है।

           

टी.आई.पी की विश्वसनीयता विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है चाहे अपराध दिन में हुई हो या रात में आरोपी की पहचान करने के लिए चश्मदीद गवाह के पास  समय कितना समय था, क्या चश्मदीद के पास आरोपी व्यक्ति को देखने के लिए बहुत कम समय था या  पर्याप्त समय था, आरोपी का चेहरा ढका हुआ था या नहीं आदि। महाराष्ट्र राज्य बनाम सैयद उमर सैयद अब्बास और अन्य मामले में गोलीबारी की घटना व्यापक रूप से हुई थी  जो दिन के उजाले में की  घटना थी हालांकि गवाहों के पास आरोपी को स्पष्ट रुप से देखने के लिए ज्यादा समय नहीं था और टीआरपी में देरी हुई थी इसलिए अदालत ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया और  यह कहा ये  बेहद संदिग्ध मामला है कि क्या चश्मदीद  गवाह के पास आरोपी का चेहरा इतने लंबे समय तक याद हो सकता है।

एक अन्य मामले में रमन भाई  नारायण भाई पटेल और अन्य बनाम गुजरात राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपी के अपील को खारिज कर दिया और इस  टिप्पणी के साथ दोष सिद्धि को बरकरार रखा था क्योंकि अपराध दिन के उजाले में किया गया था और इसलिए चश्मदीद गवाह आसानी से आरोपी व्यक्ति को याद और पहचान सकते थे ।परिस्थितियों के आधार पर न्यायालय की राय भिन्न-भिन्न होती है।आरोपी  की स्वीकार्यता और गैर स्वीकार्यता के लिए कोई निश्चित मानक नहीं तय किया गया है ।यह सब प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

           

CCTV footage की रिकॉर्डिंग:

 

 ज्यों_ज्यों समाज का विकास हुआ नई नई तकनीक भी आई और उसी विकास के फल स्वरुप सीसीटीवी कैमरे का प्रचलन भी बढा है। सीसीटीवी कैमरे का प्रचलन बढ़ने से पुलिस ने भी अपराधियो पकड़ने के लिए सहायता लेना शुरू किया  साथ ही साथ मुकदमा में असली आरोपी को पकड़ने में सहायता लेने लगा। सीसीटीवी की शुरुआत के बाद से इस ने अपराधियों को पकड़ने मे  जांच एजेंसियों की मदद करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है ।जहां चश्मदीद गवाह उपलब्ध नहीं होता है और वहा सीसीटीवी फुटेज है तो इसका इस्तेमाल अपराध को सुलझाने में एक उपकरण के रूप में किया जाता है।अब हम इस बात पर बात करते है की कौन सा गवाह ज्यादा अच्छा होता या किस के ऊपर ज्यादा भरोसा किया जाय तो हम ये देखते है की चश्मदीद गवाह की भी अपनी कुछ दोष होता है ,स्मृति से संबंधित समस्या,अपराधी द्वारा गवाह को खरीदा जा रहा हो और इस तरह उसका मुकर जाना गवाह इच्छुक गवाह हो सकता है और झूठ बोलना आदि।

यह सभी परिस्थितियां गवाह के  विश्वसनीयता  को संदिग्ध बनाती है। और कथित आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया जाता है। इसी तरह सीसीटीवी फुटेज की अपनी समस्याएं हैं जैसे की फुटेज की छवि गुणवत्ता सीसीटीवी ध्वनि रिकॉर्ड नहीं करता है ,धुंधली फुटेज सीसीटीवी कैमरा उचित काम करने की स्थिति में था या नहीं। यह सीसीटीवी के साथ समस्याओं के कुछ उदाहरण हैं और प्रत्यक्षदर्शियों के साथ और यह कहना संभवत सुरक्षित है कि सीसीटीवी फुटेज रिकॉर्डिंग भी पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं है और इस पर भी  बिना पुख्ता सबूत के आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

           

 

 जब कोई अपराध घटित होता है तो आरोपी व्यक्ति को साक्ष्य के आधार पर दोषी ठहराया जाता है सीसीटीवी फुटेज की स्थिति पर दो अलग-अलग परिदृश्य  संदर्भ में चर्चा की जा सकती है।

  1. जब एकमात्र उपलब्धि सबूत सीसीटीवी फुटेज है तब क्या इसे आरोपी के कहने पर कार्यवाही पुनः साबित करने के लिए एक ठोस सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

2. सीसीटीवी फुटेज की स्थिति क्या होगी जब रिकॉर्डिंग और प्रत्यक्षदर्शी के गवाही एक दूसरे के साथ मेल नहीं खा रही होगी।

         

इन स्थितियों में यदि सीसीटीवी फुटेज उचित और अस्पष्ट है और सीसीटीवी की उत्पत्ति उचित संदेह से अलग साबित होती है तो आरोपी व्यक्ति के उपर आरोप तय करने के लिए अदालत को मदद मिल जाती है। वैश्विकस्तर पर भी अदालत में सुनवाई के दौरान सीसीटीवी की प्रसंगिकता और महत्वपूर्ण महत्व को देखा गया है। टोमसो ब्रूनो व अन्य और उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में एक इतालवी नागरिक की हत्या वाराणसी में की गई थी और दो अन्य इतावली नागरिकों को हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था।तब सर्वोच्च न्यायालय ने पाया की सीसीटीवी फुटेज एक मजबूत सबूत है जो अपराध करने वाले आरोपी की पहचान कर सकता है और गवाह के साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सीसीटीवी फुटेज पेश करने में अभियोजन पक्ष की भूमिका मामले में गंभीर संदेह पैदा करती है। के राम जायम और अप्पू बनाम पुलिस निरीक्षक के मामले में दुकान में सीसीटीवी कैमरा लगाए गए थे जिससे स्पष्ट रूप से यह पता चलता है कि आरोपी दुकान में घुसे गहने चुराये और हत्या की, फुटेज से आरोपी का चेहरा पहचाना जा सकता था आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया जिसने अपराध करना कबूल कर लिया और अपराध के साथ आरोपी ने जो कपड़े पहने थे वह भी बरामद कर लिए गए आरोपी की तस्वीर के साथ सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की फॉरेंसिक साइंस की जांच के लिए भेजा गया था, इस मामले में सीसीटीवी के अलावा आरोपी के खिलाफ कई साक्ष्य उपलब्ध थे इसलिए आरोपी को दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई ।

       

अब प्रश्न यह है कि कौन सी सीसीटीवी फुटेज अदालत में मान्य होगा ,और इसे अदालत में मान्य बनाने के लिए सीसीटीवी फुटेज को किन प्रक्रियाओं के द्वारा मान्य बनाया जाएगा।

             

जब किसी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जाता है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की सामग्री को साबित करना अनिवार्य होता है। धारा 65 बी का प्राथमिक उद्देश्य द्वितीयक साक्ष्य द्वारा प्रमाण को सुनिश्चित करना है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अर्जुन पंडित राव खोतकर बनाम कैलाश कृष्णा राव गोटेयाल मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 (बी )पर दोबारा गौर किया और धारा 65 बी के विवादित स्थिति का निपटारा करके स्पष्ट किया।,कोर्ट सफीक मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि धारा 65 B (4)के तहत आवश्यक प्रमाण पत्र इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के माध्यम से साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए एक शर्त है जैसा कि अनवर पी.वी के बसीर  एल.डी कोर्ट ने अर्जुन पंडित राव के अपने हालिया फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि धारा 65 B(4) के तहत प्रमाण अनावश्यक है यदि मूल दस्तावेज स्वयं निरीक्षण के लिए न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है इसलिए प्रमाण पत्र की आवश्यकता के अनुसार स्थिति अब तक स्पष्ट  नहीं है।    

                 

 सीसीटीवी फुटेज के मामले में सीसीटीवी का कैमरा छवि को कैप्चर करते हैं और डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर के माध्यम से डिजिटल में बदल दिया जाता है जो कि डीवीडी या एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बन जाता है क्योंकि यहां डाटा इलेक्ट्रॉनिक रूप में संग्रहित किया जाता हैै। यदि डीवीआर स्वयं न्यायालय में लाया जाता है तो इसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 62 के तहत प्राथमिक साक्ष्य के रूप में माना जाएगा क्योंकि मूल दस्तावेज स्वयं निरीक्षण के लिए न्यायालय में लाया जाता है  और धारा 65 बी के शर्तों का पालन करने की आवश्यकता नहीं होगी हालांकि अगर बड़ी संख्या में कैमरे लगाए गए हैं और जानकारी डिजिटल रूप में विशाल सर्वर में संग्रहित है तो पूरे कार्यालय को अदालत के सामने लाया जाना संभव नहीं है ऐसे मामले में एकमात्र उपलब्ध विकल्प विशाल सर्वर से डाटा को सीडी या डीवीडी में कॉपी कर अदालत के समक्ष पेश करना होता है।

 

यूएसबीऔर सीडी को प्राथमिक साक्ष्य नहीं माना जाता है इसलिए 65B (4)का अनुपालन करना अनिवार्य माना जाता है ।सर्वर के प्रभारी व्यक्ति से एक प्रमाण पत्र प्राप्त किया जाता है प्रमाण पत्र लेने का मुख्य उद्देश्य है कंप्यूटर की उचित कार्य स्थिति को स्थापित करना जहां से अलग elotronic रिकॉर्ड निरीक्षण के लिए न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है ताकि स्थापित किया जा सके कि सामग्री के साथ गलत व्यवहार या छेड़छाड़ नहीं की गई है कंप्यूटर रिकॉर्ड की सामग्री की सत्यता  को साबित करने के लिए प्रमाण पत्र को आवश्यक   बनाया गया है।

               

 आज के दौर में अपराध पर नजर रखने के लिए लगभग हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं जांच एजेंसियों ने अपराध को सुलझा ने और दोषियों को पकड़ने के लिए सीसीटीवी की फुटेज की मदद मदद लेते हैं सीसीटीवी घटनाओं की एक सच्ची तस्वीर दिखाती है और इसकी प्रमाणिकता के कारण अदालत द्वारा इसकी विश्वसनीयता पर अधिक भरोसा  किया जा सकता है।भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी के शामिल होने के बाद से सुप्रीम कोर्ट ने electronic साक्ष्य की स्वीकार्यता के महत्व के संबंध में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। जब सीसीटीवी फुटेज की उत्पत्ति स्थापित हो जाती है और धारा 65 की आवश्यकताओं का अनुपालन करती है इसे सर्वोत्तम साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है अकेले सीसीटीवी के एक टुकड़े के आधार पर एक मामले की सुनवाई कर सकती है।

 

सीसीटीवी  की गवाही और चश्मदीद गवाहों की गवाही एक दूसरे से भिन्न हो सकती है उनमें अपने बयानों को बदलने की क्षमता होती है हालांकि प्राप्त गुणवत्ता  में सीसीटीवी फुटेज अपराध की वास्तविक घटना को दर्शाता है और ऐसे सबूत से अपराध का अनुमान और आरोपी की पहचान की जा सकती है यदि लोग किसी घटना को देखते हैं और घटना का विवरण देते हैं तो वह अपने अपने तरीके से घटना का विवरण देते हैं जो निशान 10 व्यक्तियों तो निसंदेह 10 व्यक्तियों के बयान अलग-अलग होंगे लेकिन सीसीटीवी फुटेज में ऐसी कोई भ्रांति नहीं होती है जो इसे मानवीय साक्ष्य श्रेष्ठ माना जाता है भले ही सीसीटीवी फुटेज एक अकेला सबूत है लेकिन इसके महत्व को कम नहीं आंका जा सकता इसे आरोपी व्यक्ति के पहचान के लिए सबसे अच्छा सबूत माना जा सकता है यदि प्रत्यक्षदर्शी भी हैं तो सीसीटीवी फुटेज ऐसे गवाहों की गवाही में सहायता करते हैं और इसकी पुष्टि भी।