जलवायु परिवर्तन क्या है? 

जलवायु परिवर्तन पर्यावर्णीय मुद्दा है जो मानवो द्वारा अपने सुख सुबिधाओं को बढ़ावा देने के लिए ,प्रकृति के साथ खिलवाड़ करके अपने भविष्य को चुनौती पूर्ण बनाया जा रहा है | अगर हम गौर करें तो पिछले कुछ सालों से जलवायु में अचानक तेज़ी से बदलाव हो रहा है, क्योंकि मौसम परिवर्तन का अपना एक तरीका होता है।जो कि बदलने लगा है यह महसूस होने लगा है कि  गर्मी का समय अब  बहुत लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां बहुत छोटी, यही जलवायु का  परिवर्तन विश्व की सबसे प्रचंड समस्या में से एक है जैसे नवंबर दिसंबर मध्य तक ठंड का अहसास ना होना। फरवरी-मार्च तक सर्दी पडना, सितंबर से वर्षा होना, अक्टूबर के महीने तक गर्मी पड़ना। यह परिवर्तन पूरे विश्व में दिख रहा है ,इसी को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है।वैज्ञानिको ने यह दावा किया है कि ग्रीन हाउस इफेक्ट’ ही इसका मुख्य कारण है।

जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारण :

जलवायु परिवर्तन  के लिए साधारण तौर पर तो कई घटक जिम्मेदार है। किन्तु इस परिवर्तन को अच्छे से समझने के लिए इन कारणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहला प्राकृतिक कारण दूसरा मानवीय कारण। पहला कारण - प्राकृतिक कारण वह है जिससे , प्रकृति द्वारा जलवायु में  परिवर्तन पाया जाता है जैसे - प्रमुख महाद्वीपों का खिसकना, ज्वालामुखी तंरगे | और दूसरा कारण है  पृथ्वी का मानवीय क्रियाओं द्वारा ग्रीन हाउस प्रभाव को प्रभावित होना शामिल है |

पूर्व काल  में  जलवायु परिवर्तन केवल  प्राकृतिक कारकों से ही हुआ करते थे। ऐसा माना जाता है कि लगभग 220 वर्षों पहले औद्योगिक क्रांति आने के फलस्वरूप मशीनों द्वारा भारी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा। इन मशीनों को चलाने के लिये अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होने के कारण और ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयले एवं तेल जैसे ईंधनों का इस्तेमाल किया जाता था। जिन्हें ‘जीवाश्म ईंधन’ कहते हैं ।इन जीवाश्म ईंधनों को जलाते समय कार्बन डाइऑक्साइड वायु उत्सर्जित होती है।इन सभी कारणों से औद्योगिकीकरण के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, ओजोन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी वायुओं का उत्सर्जन भी बढ़ा है।इन वायुओं को ही  ‘ग्रीनहाउस वायु’ (गैस) कहा गया है ।इससे यह तो साफ तौर पर पता चलता है कि पिछले 200 वर्षों के दौरान हमने अपनी गतिविधियों के कारण वायुमण्डल में ग्रीनहाउस वायुओं की विशाल मात्रा उत्सर्जित की है । जो यह दर्शाता है कि आज के समय में मानव ही जलवायु परिवर्तन के लिये मुख्यरूप से उत्तरदायी है।

यह मानव जीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है ? 

हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन परिस्थितिक तंत्र को पहले से ही नुकसान पहुंचा रही है, इसकी सच्चाई ग्लेशियरों के पिघलने, मानसून परिवर्तन एवं समुद्र की तरंगों में देखी जा सकती है।इसके अलावा भी जलवायु परिवर्तन से होने वाले कई दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं जैसे :

  • प्रतिकूल मौसम -प्रतिकूल मौसम में यह प्रायः देखने को मिलता है कि  कुछ स्थान बहुत गर्म है ; तो कुछ स्थान सूखा ग्रस्त है ; जबकि कई जगहों पर अत्यधिक वर्षा हो रही है । साथ ही लू, सूखा, बाढ़ (अधिक वर्षा एवं हिमनदों के पिघलने के कारण) एवं तीव्र तूफ़ानी हवाएँ इत्यादि देखने को मिलेंगे।
  • हिम खंड का पिघलना  - जलवायु परिवर्तन के ही वजह से  बर्फीली चोटिया पिघलने लगी है, बर्फ के पहाड़ पहले की अपेक्षा काफी छोटे हो रहे हैं । आर्कटिक की समुद्री बर्फ, विशेष रूप से पिछली कुछ गर्मियों से, काफी पतली होती जा रही है। अगस्त 2000 में उत्तरी ध्रुव पर बिलकुल बर्फ नहीं थी बल्कि वहां सिर्फ पानी-ही-पानी ही देखने को मिला।
  • जल स्तर में अचानक वृद्धि - हिमनदों एवं ध्रुवीय बर्फीली चोटियों के पिघलने से समुद्र में जल की मात्रा काफी बढ़ेगी परिणामस्वरूप छोटे द्वीप एवं समुद्र तटीय क्षेत्र जलमग्न हो सकते हैं । बाढ़ की आशंका से इन उपजाऊ कृषि क्षेत्रों पर निर्भर रहने वाले हजारों लोग भी काफी प्रभावित होंगे।
  • जैवविविधता का लुप्त होना  -पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं को जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल होगा  परिणामस्वरूप वे  प्रवासन करने के लिये बाध्य हो जायेंगे । जो प्रवासन नहीं कर सकते हैं वे निकट भविष्य में गायब हो जाएँगे। जो ठंडी जलवायु के अनुकूल हैं, वे लुप्त हो जाएंगे 
  • मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव - अधिक गर्मी होने के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी बहुत  गहरा प्रभाव पड़ेगा।  उष्णकटिबन्धीय रोग जैसे मलेरिया, मस्तिष्क ज्वर, पीत ज्वर व डेंगू जैसी बीमारियाँ वर्तमान के शीतोष्ण क्षेत्रों में भी फैलेगी।

यह तो साफ हो चूका है कि जलवायु परिवर्तन से मनुष्य पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्नीसवीं सदी के बाद से पृथ्वी की सतह का तापमान 3 डिग्री से 6 डिग्री तक बढ़ गया है। यह तापमान में वृद्धि के आंकड़े हमें अभी तो  मामूली लग रहे हैं। लेकिन यह आगे चलकर महाविनाश को कारण बन सकता है ।अगर हम वैज्ञानिकों की मानें तो, यदि हम इसी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते रहे तो इस वायु का स्तर औद्योगिक क्रांति से पहले की अपेक्षा दोगुना हो जाएगा। इसके फलस्वरूप वर्ष 2050 तक पृथ्वी का औसत तापमान 5.8 डिग्री C तक बढ़ जाएगा।इसलिए हमे इसको नियंत्रित करने के लिए आज और अभी से  उपाय करने की आवश्यकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के परिणाम हमें भारी मुसीबत में ला सकता है ।

जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण के कुछ उपाय :

हमें जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए  ग्रीन हाउस गैसों को  कम  करने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए हमें ऐसी गतिविधियाँ अपनानी होगी  जो कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में सहायक होती हैं। जैसे –साइकिल चलाना और मोटर वाहन का कम उपयोग करना ।वृक्षों की कटाई पर रोक लगाना बहुत ही जरुरी है ।

इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली वस्तुओं का अत्यधिक प्रयोग करना चाहिए ।

कम दूरी के लिये व्यक्तिगत वाहनों का प्रयोग करें ।

भारी मात्रा में पेड़ लगाना।

जहाँ भी संभव हो बिजली के उपयोग में कमी लाना।

सार्वजनिक यातायात साधनों का प्रयोग करके ।

दिन के समय प्राकृतिक रोशनी का प्रयोग करना चाहिए ।

जब भी संभव हो आप पैदल चलें ।

वर्षा की जल का संचयन।

रोशनी के लिये सीएफएल बल्बों का प्रयोग करना।

आवश्यकता न होने पर विद्युत उपकरणों जैसे कम्प्यूटर एवं म्यूजिकल उपकरणों को बंद रखना चाहिए ।

मौसमी एवं स्थानीय खाद्य पदार्थों का ही प्रयोग करें ।

कूड़े को जलाना।

हमेशा कपड़े के थैले का प्रयोग करना।

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