महाकुंभ में स्नान और पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

 

कुंभ मेला  को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक मेले में से एक माना जाता है|  30-45 दिन तक चलने वाला महाकुंभ हिंदुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है | महाकुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में होता है और इनमें प्रयागराज में लगने वाला महाकुंभ को सबसे उत्तम माना गया है| 

 

वर्ष  2025 का महाकुंभ मेला प्रयागराज में लगाया जा रहा है|

 

 

 

हर 12 साल पर कुम्भ मेला लगता हैं लेकिन इस बार 144 साल बाद 2025 में प्रयागराज में लग रहा है महाकुम्भ मेला।इसके पीछे ख़ास खगोलीय संयोग है, कुम्भ और महाकुम्भ मेले में काफी अंतर है ,इसके विषय में इस लेख में जानते हैं ..

14 जनवरी 2025 को शाही स्नान कर करोड़ों यात्री प्रयागराज के पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्त होंगे।इस मेले में 10 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के भाग लेने उम्मीद लगाई गई है।

 

 

महाकुंभ और कुम्भ का अंतर :

 

 

महाकुंभ और कुम्भ का अंतर

 

 

कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों और नक्षत्रों की विशिष्ट स्थिति के आधार पर किया जाता है। कुंभ मेला का आयोजन तब होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ट स्थिति में होते हैं लेकिन जब बृहस्पति मकर राशि में और सूर्य व चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं, तब महाकुंभ का समय बनता है और यह संयोग हर 144 वर्षों में एक बार आता है। इस संयोग को विशेष रूप से शुभ और अति दिव्य माना गया  है। हर 144 साल में एक दुर्लभ खगोलीय घटना होती है, जो कुंभ मेले को विशिष्ट बनाकर महाकुम्भ बना देती है। हिंदू ज्योतिषीय गणनाओं में 12 और 144 वर्षों के चक्र का महत्व बताया गया है। 12 साल के चक्र को एक सामान्य कुंभ कहा जाता है और 12 कुंभ मेलों के बाद (12x12=144 साल) "महाकाल कुंभ" या "विशेष महाकुंभ" आता है।

 

 

कब कब होंगे महाकुंभ के छह शाही स्नान

 

 

 

वर्ष  2025 का महाकुंभ मेला प्रयागराज में लगाया जा रहा है|  महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी को पूर्णिमा से होगी और इसका समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा|  प्रयागराज कुंभ मेले में छह शाही स्नान होंगे|  महाकुंभ मेला का पहला शाही स्नान 13 जनवरी 2025 से शुरू होगा| 

शास्त्रों में यह लिखा गया है कि महाकुंभ में स्नान और पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। देवताओं और ऋषियों ने भी महाकुंभ स्नान को अत्यधिक पवित्र बताया है।

 

 

 

महाकुंभ और कुम्भ का अंतर

 

 

 

पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के समय की कथा में  कुंभ मेले का उल्लेख मिलता है। पुराणों में ऐसा वर्णन किया गया है कि  समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर आए थे, तब देवताओं और दानवों के बीच अमृत प्राप्ति को लेकर संघर्ष आरम्भ हो गया था , तब भगवान विष्णु ने इस लड़ाई को रोकने और अमृत को सुरक्षित रखने के लिए मोहिनी का रूप धारण किया। उन्होंने अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए इंद्रदेव के पुत्र जयंत को सौंपा। जयंत अमृत कुंभ को लेकर आकाश मार्ग से चले, लेकिन दानवों ने उनका पीछा किया। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं। ये बूंदें प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर, हरिद्वार में गंगा नदी में, उज्जैन में क्षिप्रा नदी में और नासिक में गोदावरी नदी में गिरीं। इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले की परंपरा शुरू हुई।

 

 

 

अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए इंद्रदेव के पुत्र जयंत को सौंपा। जयंत अमृत कुंभ को लेकर आकाश मार्ग से चले, लेकिन दानवों ने उनका पीछा किया। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं।

 

 

 

यह माना जाता है कि हर 144 साल में अमृत कलश से विशेष ऊर्जा या दिव्यता पृथ्वी पर उतरती है, जिससे यह मेला और अधिक पवित्र हो जाता है।

इसके अलावा, कुंभ मेला में आध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक विचारधारा का आदान-प्रदान के साथ ही सामाजिक समरसता का ध्यान रखा जाता है। यहां कई आध्यात्मिक और धार्मिक सभाएं आयोजित होती हैं, जिनमें साधु-संतों के प्रवचन, योग साधना और विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान किये जाते हैं।


महाकुंभ 2025 पहला शाही स्नान की तिथि :

 

 

महाकुंभ में स्नान और पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

 

2025 के महाकुंभ में पहला शाही स्नान पौष पूर्णिमा के दिन होगा। पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 को सुबह 5:03 बजे से शुरू होकर 14 जनवरी को रात 3:56 बजे तक रहेगी। इस दौरान स्नान के शुभ मुहूर्त निम्नलिखित हैं:
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 5:27 से 6:21 तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:15 से 2:57 तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:42 से 6:09 तक
निशिता मुहूर्त: रात 12:03 से 12:57 तक

 

 

 

 

2025 के महाकुंभ में पहला शाही स्नान पौष पूर्णिमा के दिन होगा।

 

 

 

 

कब कब होंगे महाकुंभ के छह शाही स्नान :

पहला शाही स्नान: 13 जनवरी, पौष पूर्णिमा
दूसरा शाही स्नान: 14 जनवरी, मकर संक्रांति
तीसरा शाही स्नान: 29 जनवरी, मौनी अमावस्या
चौथा शाही स्नान: 3 फ़रवरी, बसंत पंचमी
पांचवां शाही स्नान: 12 फ़रवरी, माघी पूर्णिमा
छठा और आखिरी शाही स्नान: 26 फ़रवरी, महाशिवरात्रि

शाही स्नान के सही  नियम :

 

महाकुंभ में स्नान और पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

 

 

 

 

अगर आप शाही स्नान के दिन महाकुंभ स्नान करने के लिए जा रहे  हैं तो इन मुख्य बातों का जरूर  ख्याल रखें। वरना आपको महाकुंभ स्नान का सही और पुण्यकारी फल नहीं मिलेगा। 

शाही स्नान वाले दिन सबसे पहले साधु-संत स्नान करते हैं। इसके बाद ही गृहस्थ लोग गंगा स्नान कर सकते हैं। 
गंगा स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य जरूर दें|  
गृहस्थ लोग को गंगा में 5 बार डुबकी लगाना चाहिए। 
गंगा स्नान के बाद गरीब और जरूरतमंदों को यथासंभव अन्न, धन, वस्त्र आदि चीजों का दान करें।