वीर बाल दिवस का महत्व 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने यह घोषणा की है कि  हर वर्ष 26  दिसंबर को  वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जायेगा । उन्होंने शहादत सप्ताह मनाने की भी बात कही है । पहला वीर बाल दिवस  26 दिसम्बर 2022 से मनाया जाने लगा। गुरु गोविन्द सिंह ने धर्म और न्याय की रक्षा के लिए अपने चारों पुत्र का बलिदान कर दिया था। उनकी धर्म और न्याय की रक्षा के लिए दी गए शहादत की इस महान  गाथा को देश की भावी पीढ़ी भी जाने और उनके जीवन से प्रेरणा ले सके इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु प्रकाश पर्व के अवसर यह  घोषणा करते हुए 26 दिसंबर को हर वर्ष वीर बाल दिवस  के रूप में मनाने का निर्णय किया है। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के चारों साहिबजादों के शहीदी दिवस को इस विशेष दिवस के रूप में मनानेे का निर्णय किया गया है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शहादत सप्ताह मनाने की बात कही।हालांकि सिख धर्म तो 20 दिसम्बर से 26 दिसम्बर तक का समय उदासीनता से  ही मनाते हैं ।  इस दिन इन साहिबजादों ने शहादत को गले लगाकर खुद को इतिहास में अमर कर लिया। नवाब ने इन्हें असहनीय यातना देते हुए 26 दिसम्बर के दिन जीते जी दीवार में चुनवा दिया था ।

मुगल शासक ओरंगजेब ने 16वी व 17वी शताब्दी के बीच  जबरन धर्म परिवर्तन की हठधर्मिता को बढ़ावा दिया | उन्होंने भारत में मुस्लिम बनाने के लिए अन्य धर्मों के धार्मिक क्रिया कलाप यानी पूजा अर्चना पर पाबन्दी  लगा दी । जो सभी के लिए नागवार गुजरी । उधर सिख धर्म की रक्षा कर रहा खालसा पंथ ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया । जिसे ओरंगजेब सहन नहीं कर पाए। जिसकी वजह से मुगलों और सिखों के बीच चमकौर युद्ध हुआ ।सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के 18 साल के पुत्र अजित सिंह और 15 साल के पुत्र जुझार सिंह चमकौर में मुगलों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे साहिबजादे नौ वर्ष के जोरावर सिंह और छह वर्ष के फतेह सिंह को धर्म परिवर्तन न करने के कारण मुगल शासक औरंगजेब के हुक्म पर 26 दिसंबर 1704 ईसवी को सरहिंद के नवाब ने इन दोनों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया था।दोनों छोटे साहिबजादों को दीवार में चुनवाने से पहले तरह तरह के  असहनीय कष्ट दिएं गए । कभी उन्हें भूखा रखा गया । चलती सर्द हवाओं में उन्हें बिन कपडे रखा गया । उनकी ऊँगली के ऊपरी भाग को आग से जलाया। कोड़े मारे गए उनके हाथों को पीपल से बाँधकर गूलेल मारी। इन सब कष्टों के बाबजूद बच्चे निडर रहे। कमाल की बात है साहिबजादो के चेहरों पर किसी प्रकार का कोई खौफ नही था , कोई डर नही थी , यह बात उन लोगों को बर्दाश्त नही हो रही थी।उनके साथ ही उनकी माता गुजरी भी शहीद हो गई।माता गुजर कौर को ठण्डे बुर्ज की छत से नीँचे फेक दिया गया था| 

इस प्रकार  इस दिवस को मानने का एकमुख्य  कारण यह है कि किस प्रकार धर्म और न्याय की रक्षा के लिए गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने चारों पुत्र को बलिदान कर दिया। इस गाथा को देश की भावी पीढ़ी भी जाने और उनके जीवन से प्रेरणा ले सके।