कैविएट याचिका का प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में धारा 148A में किया गया है।कैविएट शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका मतलब है जागृत होना ।जब किसी को इस बात का डर होता की विपक्षी पार्टी बिना सूचना दिए हुए उसके खिलाफ कोर्ट में वाद डाल सकती है और बिना आपको नोटिस किए कोर्ट से ऐसा आदेश पारित करवा सकता है जिससे सीधे सीधे आपके हितों का नुकसान होता है,तो आप कोर्ट में कैविएट की याचिका कोर्ट में लगा सकते है।ऐसा करके आप आप कोर्ट द्वारा सूचना पाने का अधिकार पा जाते है। दूसरे शब्दों में,कैविएट एक प्रकार का सूचना है जो एक वादी द्वारा कोर्ट को दी जाती है की जिसमे ये कहा जाता है कोर्ट आवेदन कर्ता को बिना नोटिस भेजे विपक्षी पार्टी को ऐसा आदेश जारी न करे या रिलीफ दे जिसमे आवेदक के हितों का नुकसान हो ।यह एक प्रकार का बचाव है जो एक पार्टी के द्वारा लिया गया कदम है,जो व्यक्ति कैविएट को फाइल करता है उसको कैविटर कहा जाता है।
कैविएट का आवदेन केवल सिविल वाद में ही कर सकते है क्रिमिनल वाद में नहीं।कैविएट का याचिका सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 148 Aअंतर्गत किया जाता है।कैविएट याचिका का मतलब यह है की आप कोर्ट से ऐसा अनुरोध कर रहे है की अगर किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा वाद प्रस्तुत किया जाता जिस पर आपको संदेह है वह आपको बिना नोटिस किए आप के हितों के विरुद्ध आदेश कोर्ट से पारित करवा सकता है ,इसलिए जब आप कैविएट का आवदेन कोर्ट में देते है तो कोर्ट से यह आवेदन करते है जब अमुक व्यक्ति द्वारा कोई वाद प्रस्तुत किया जाता है तो कोर्ट अपना आदेश सुनाने से पहले इसका नोटिस कैविटर को भेजे, तथा न्यायालय उसके पक्ष को भी सुने तभी अपना आदेश दे। यह आवदेन 90दिनों तक ही प्रभावी होती है,90दिन पूरा हो जाने पर फिर से नया आवेदन कोर्ट में देना होता है।
अगर विपक्षी के द्वारा 90 दिनों के अंदर कोई वाद कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है तो इससे संबंधित सूचना कोर्ट कैविएटर को दे जाती है,इसलिए कैविएट की याचिका जब कोर्ट में दी जाती तो आवेदक द्वारा उस वादी का नाम और पता स्पष्ट होना चाहिए जिसके बारे में आवेदक को ये विश्वास हो की वो ऐसा कर सकता है।
कैविएट का आवदेन कोर्ट में देते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए_____
1.कोर्ट का नाम जहां की वाद प्रस्तुत किया जा सकता है,
2.अगर वाद संख्या है तो वो भी याचिका में दे जानी चाहिए।
3.उस व्यक्ति का नाम जिसके द्वारा आवेदक के हितों के विरुद्ध आदेश कोर्ट द्वारा ले सकता है।
4.वाद के बारे में सारी जानकारी ।
5.आवेदक को अपना पूरा नाम पता फोन नंबर आदि सप्ष्ट रूप से होना चाहिए।