सावन के पावन मास में हम शिव भक्तों के मन में काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए एक अलग ही श्रद्धा और विश्वास उत्पन्न हो जाता है | यह मंदिर पवित्र वाराणसी के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है, जहाँ न केवल पूरे भारत से भक्त दर्शन पाकर कृतार्थ होते हैं अपितु विदेशी पर्यटक भी भोले शंकर की कृपा पाने की चाह लिए इस मंदिर में दर्शन के लिए लम्बी लाइन में खड़े पाए जाते हैं | हर साल यह मंदिर शिव भक्तों को आकर्षित करता है। काशी नगरी को मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर विराजमान है।
पुराणों के अनुसार काशी नगरी पहले भगवान विष्णु की पुरी हुआ करती थी। परन्तु भगवान शिव ने विष्णु जी से यह अपने निवास के लिए मांग लिया था। इसके पीछे एक पौराणिक कथा यह भी है कि जब भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर धड़ से अलग किया था उस समय वह सिर उनके करतल से चिपक गया ,माना जाता है कि करीब बारह वर्षों तक भगवान शिव द्वारा अनेक तीर्थों का भ्रमण करने के बावजूद भी वह सिर उनके करतल ने अलग नहीं हुआ। इसी भ्रमण करने के दौरान जैसे ही शिव जी ने काशी में कदम रखा ब्रह्महत्या का यह दोष खत्म हो गया क्योंकि वह सिर उनके करतल से अलग हो गया। इस घटना के बाद से ही भगवान शिव को काशी अत्यधिक भाने लगी और उन्होंने इसे भगवान विष्णु से इसे अपने रहने के लिए मांग लिया। जिस स्थान पर वह सिर शिव के करतल से अलग हुआ था वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया।
जैसा कि सभी जानते हैं कि पवित्र शहर वाराणसी गंगा नदी के तट पर स्थित है, यह शहर सनातन समुदाय के लिए एक बहुत ही पूजनीय स्थान है। हिंदू पौराणिक की कई कथाओं में पवित्र माने जाने वाला वाराणसी ऊर्फ काशी नगरी की तीर्थयात्रा भक्तों के लिए अत्यधिक पूजनीय है। काशी विश्वनाथ मंदिर पवित्र वाराणसी के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है | भोले बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के बारे में यह बात भी प्रचलित है कि जब इस पृथ्वी का निर्माण हुआ तो सूर्य की सबसे पहली किरण काशी नगरी पर ही पड़ी थी।
बरसों पहले मुगलों के शाशन के काल में काशी विश्वनाथ मंदिर को बार - बार लूटा गया था। इतिहास में तो यह कहा गया है कि मुगल सम्राट अकबर ने मूल मंदिर के निर्माण की अनुमति दी थी, लेकिन उनके परपोते औरंगजेब ने बाद में मंदिर को नष्ट कर उसी जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया।ऐसा बताया गया है कि भक्तों को जब यह पता चला कि औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ना चाहता है तो भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग को वहां पास ही के एक कुएं में छिपा दिया गया। जिसे अभी भी मंदिर और मस्जिद के बीच में देखा जा सकता है। 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महरानी अहिल्या बाई होल्कर के द्वारा सन 1780 में करवाया था। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 किलो शुद्ध सोने का प्रयोग कर इसे निर्मित करवाया गया था।
शिव जी की प्रिय नगरी काशी में 12 ज्योतिर्लिंगों के समान माने जाने वाले 12 मंदिर भी मौजूद हैं। इन मंदिरों का नाम है - सोमनाथ महादेव मंदिर, ओंकारेश्वर महादेव मंदिर, मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर, महाकालेश्वर महादेव मंदिर, बैजनाथ महादेव मंदिर, भीमाशंकर महादेव मंदिर, रामेश्वर महादेव मंदिर, नागेश्वर महादेव मंदिर, श्री काशी विश्वनाथ नाथ मंदिर, घृणेश्वर महादेव मंदिर, केदार जी और त्र्यंबकेश्वर महादेव मंदिर।
इन मंदिर के साथ ही काशी में कुल 88 घाट भी हैं इन घाटों में से 86 घाटों पर पूजा और समारोह का आयोजन होता है किन्तु 2 घाटों का उपयोग शमशान भूमि के लिए किया जाता है। काशी नगरी मोक्ष की नगरी के नाम से भी प्रचलित है | यह मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दरबार में उपस्थिति मात्र से ही भक्तगण को जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
अगर आप भी काशी विश्वनाथ के भ्रमण के लिए मन बना रहे हैं तो काशी के प्रमुख मंदिरों की सूची नीचे दी गई है ,आप इन मंदिरों का भी दर्शन कर भोले भंडारी का आशीर्वाद प्राप्त करें -
1. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर
2. मृत्युंजय महादेव मन्दिर
3. माँ अन्नपूर्णा मन्दिर
4. विश्वनाथ मन्दिर बी एच यू
5. संकठा मन्दिर
6. तुलसी मानस मन्दिर
7. कालभैरव मन्दिर
8. भारत माता मन्दिर
9. दुर्गा मन्दिर
10. संकटमोचन मन्दिर
भोले की नगरी काशी विश्वनाथ के कण-कण में चमत्कार की कई कहानियां भरी पड़ी हैं| मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के इस धाम में आकर हर भक्तों की सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं औऱ जीवन धन्य हो जाता| कहते हैं अगर भक्तों के जीवन में ग्रह की ख़राब दशा के कारण कोई दिक्कत आ रही है, या ग्रहों की कुचाल ने जीना दूभर कर दिया है तो काशी विश्वनाथ आकर दर्शन करने के बाद यदि रुद्राभिषेक भी करवाया जाये तो हर प्रकार की मनोकामना पूरी हो जाती है|