करवा चौथ व्रत की पूजा पद्धति और शुभ मुहूर्त :
करवा चौथ का त्योहार अक्टूबर या नवंबर के महीने में उत्तर और पश्चिम भारत में मनाया जाता है। अन्य हिंदू त्योहारों की तरह, यह त्योहार भी हिंदू कैलेंडर या पंचांग पर आधारित है जिसमें खगोलीय स्थिति का विवरण है, सबसे खास है करवा चौथ व्रत में तिथि और समय के साथ चंद्रमा की स्थिति । यह दिन पूर्णिमा के चौथे दिन मनाया जाता है क्योंकि चतुर्थी महीने का चौथा दिन होता है। करवा चौथ का त्योहार हर साल दिवाली से 10 दिन पहले आता है। इस दिन को विवाहित महिलाएं चांद निकलने तक व्रत रखकर मनाती हैं। करवा चौथ 2023 भारत में 1 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा।
करवा चौथ को कई जगह करक चतुर्थी भी कहा जाता है |करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलायें अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है| यह व्रत सुहागिन स्त्रियां पूरे दिन निर्जला रहकर करती हैं | रात में जब चांद निकलता है तब भलीभांति पूजा करके चाँद को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति का चेहरा देखकर चंद्रदेव से पति के लंबी उम्र की कामना करते हुए अपने व्रत को पूरा करती हैं|
इस वर्ष 2023 में करवा चौथ व्रत की शुरुआत सुबह 6:36 बजे से शुरू होगी | सभी व्रत रखने वाली महिलायें सरगी 2023 सुबह 6:36 बजे से पहले ही खा लें | फिर महिलाएं तैयार हो जाएं और अपना दूसरा काम कर लें| बाद में लगभग 5:30 बजे प्रत्येक महिला अपनी पूजा की थाली तैयार करें और अपने दोस्तों या परिवार के साथ उत्सव मनाएँ| शाम 5:44 बजे, करवा चौथ 2023 व्रत कथा का सटीक मुहूर्त शुरू होगा और चंद्रोदय का संभावित समय , रात 8:36 बजे है, इसी समय महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर करवा चौथ व्रत को खोल सकती हैं|
करवा चौथ व्रत में पूजा करने की विशेष पद्धति है आप इस विधि से पूजा करें :
सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाएं।
फिर स्नान करके नए और साफ कपड़े पहनें।
भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प करें|
अपने घर के मंदिर की दीवार पर करवा माता की आरती बनाएं।
चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति स्थापित करें।
साफ थाली में दीपक, सिन्दूर, अक्षत, कुमकुम, रोली और मिठाई रखें।
बर्तन में जल भरें।
माता पार्वती को 16 श्रृंगार का सामान चढ़ाएं और दोबारा पूजा करें।
करवा चौथ व्रत की कथा कहें अन्यथा इसके बिना यह व्रत पूरा नहीं होगा।
चंद्रमा निकलने के बाद छलनी में दीपक रखें और उसमें से चंद्रमा को देखें।
इसके बाद अपना व्रत पूरा करें |
करवा चौथ की इस कथा को पढ़ें और अन्य सुहागन महिलाओं को भी सुनाए :
प्राचीन काल में एक धर्मपरायण ब्राह्मण था। उसके सात पुत्र थे और एक पुत्री थी। उसकी पुत्री सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण अपने भाइयों की बड़ी लाडली बहन थी। बड़ी होने पर उसका विवाह एक ब्राह्मण युवक से किया गया। विवाह के बाद वह अपने मायके आई। जब करवा चौथ आया तो उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा परंतु शाम होते-होते वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी। शाम को जब उसके सभी भाई खाना खाने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी साथ में खाने का आग्रह किया। बहन का मुख एकदम से कुम्हलाया हुआ था, बहन ने भाइयों से कहा कि मेरा आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और चंद्रमा के निकलने पर उसे देखकर अर्घ्य देगी और तभी खाना खा सकती है। लेकिन चंद्रमा नहीं निकला है और वह उसकी ही प्रतीक्षा कर रही है।
भूख-प्यास से व्याकुल बहन की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई। उसके एक भाई ने बहन की ऐसी हालत देख पीपल के पेड़ पर चढ़कर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दीपक की रोशनी दूर से देखने पर ऐसा लगने लगा कि चांद ही निकल आया है। इसके बाद एक भाई ने आकर बहन को कहा कि चलो बहन चांद निकल आया है, तुम अर्घ्य दे दो और भोजन कर लो। बहन ने सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद के दर्शन किए और उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गई।
पर जैसे ही उसने पहला कौर मुँह में डाला तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा खाते ही उसमें बाल निकल आया और जैसे ही उसने तीसरा कौर खाने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार आ गया। अब तो उसने विलाप करना शुरू कर दिया तब उसकी भाभी ने पूरी सच्चाई से अवगत कराया कि उसके साथ आखिर ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ के व्रत को गलत तरीके से तोड़ने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। उसने अपनी भाभी से पूछा कि अब उसे क्या करना चाहिए ? भाभी ने ननद को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा। उसने अपने पति का दाह संस्कार नहीं करने दिया और पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा।
उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसे सदा सुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया। तभी से सुहागिन महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा और यह व्रत पूरी आस्था के साथ हर घर में मनाया जाता। तो हम तो यही प्रार्थना करते हैं कि जिस प्रकार सात भाइयों की बहन को सदा सुहागन का वरदान मिला, वैसा ही सभी सुहागिन स्त्रियों को मिले।